मेरा छह साल का बेटा, ओवेन, एक बोर्ड-गेम पाकर उत्तेजित हो गया l परन्तु आधे घंटे तक नियम पढ़ने के बाद, वह निराश हो गया l वह समझ नहीं पा रहा था खेल कैसे खेला जाता थे l खेल जाननेवाला उसके मित्र द्वारा समझाए जाने पर, आख़िरकार ओवेन अपने उपहार का आनंद लिया l

उनको खेलते हुए देखकर, मैंने स्मरण किया कि एक अनुभवी शिक्षक होने पर कुछ नया सीखना अधिक सरल होता है l हमारे सीखते समय, निर्देशों को पढ़ना सहायक होता है, परन्तु समझाने वाले एक मित्र के होने से एक बड़ा अंतर होता है l

प्रेरित पौलुस भी इसे समझता था l तीतुस को लिखते हुए कि किस प्रकार विश्वास में उसकी कलीसिया को उन्नति करने में वह सहायता कर सकता था, पौलुस ने अनुभवी विश्वासियों के महत्व पर बल दिया जो मसीही विशवास का नमूना बन सकते थे l अवश्य ही “दुरुस्त सिद्धांत” सिखाना महत्वपूर्ण था, परन्तु यह केवल बताने के विषय नहीं था – उसे व्यवहारिक रूप से जीना भी ज़रूरी था l पौलुस ने लिखा कि बूढ़े पुरुष और स्त्रियाँ संयमी, पवित्र, और प्रेमी हों (तीतुस 2:2-5) l उसने कहा, “सब बातों में अपने आप को भले कामों का नमूना बना” (पद.7) l

मैं ठोस शिक्षा के लिए धन्यवादित हूँ, परन्तु मैं उन अनेक लोगों के लिए भी धन्यवादित हूँ जो क्रियाशील शिक्षक रहे हैं l उन्होंने खुद के जीवन से मुझे दिखाया है कि मसीह का शिष्य कैसा होता है और मेरे लिए उस पथ पर चलना उन्होंने सरल बना दिया है l