मैं बचपन में अन्य बच्चों की तरह ही शरारती थी और परेशानी से बचने के लिए अपनी बुरी आदतें छिपाने की कोशिश करती थी l इसके बावजूद अक्सर मेरी माँ मेरी गलतियाँ पकड़ लेती थी l मैं याद करके चकित होती हूँ कैसे तुरंत और सही तौर से वह मेरी शरारत के विषय जान लेती थी l जब मैं अचंभित होकर उनसे पूछती थी, वो हमेशा कहती थी, “मेरे सिर के पीछे भी आँखें हैं l” यह, अवश्य ही, मुझे पता लगाने को विवश किया कि क्या वास्तव में उनके सर के पीछे आँखें थीं – क्या अदृश्य आँखें या ऑंखें जो उनके लाल बालों में छिपी हुयी थीं? बड़ी होने पर मैं उनकी सर के पीछे आँखें खोजना बंद कर दी और मैंने जाना कि अब मैं उतनी शरारती नहीं थी l उनकी सतर्क आँखें उनके बच्चों के लिए प्रेमी चिंता का प्रमाण था l

मैं बहुत अधिक अपनी माँ के सतर्क देखभाल के लिए कृतज्ञ हूँ (बावजूद इसके कि कभी-कभी निराश होती थी कि मैं पकड़ी जाती थी), मैं उससे भी अधिक धन्यवादित हूँ कि परमेश्वर स्वर्ग से दृष्टि करके “सब मनुष्यों को निहारता है” (भजन 33:13) l हम जितना करते हैं उससे कहीं अधिक वह देखता है; वह हमारे दुःख, हमारे आनंद, और एक दूसरे के लिए हमारे प्रेम को देखता है l

परमेश्वर हमारा वास्तविक चरित्र देखता है और हमेशा जानता है हमें किसकी ज़रूरत है l सिद्ध दृष्टि से, जो हमारे हृदयों के भीतर भी देखता है, वह उससे प्रेम करनेवालों और उसमें आशा रखनेवालों की हिफाजत करता है (पद.18) l वह हमारा ध्यान देनेवाला और प्रेमी पिता है l