एक व्यक्ति के लिए जो नियमावली के अनुसार जीवन जीता है, कहने का अर्थ है कि, यह एक बड़ी हार महसूस हो रही थी l मैं क्या करता? ठीक है, मुझे नींद आ गयी l जब हमारे बच्चे शाम को बाहर जाते हैं उन्हें दिए गए समय में ही घर लौटना होता है l वे अच्छे बच्चे हैं, परन्तु मेरी आदत हो गयी है कि उनके हाथों से सामने वाले दरवाजे की घुंडी घुमाने की आवाज़ आने तक मैं इंतज़ार करूँ l मुझे ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है : मैंने ऐसा करने का चुनाव किया है l परन्तु एक रात मैंने अपनी बेटी को मुस्कराकर मुझे कहते हुए सुना, “पापा, मैं सुरक्षित हूँ l आपको सो जाना चाहिए l” हमारे श्रेष्ट इरादों के बावजूद, पिता अपने प्रहरी स्थानों पर सो जाते हैं l यह नम्र करने वाली बात थी, और यह मानवीय है l

परन्तु यह परमेश्वर के साथ कभी नहीं होता है l भजन 121 उसके विषय जो अपने बच्चों का निगहबान और संरक्षक हैं का पुनः आश्वस्त करनेवाला एक गीत है l भजनकार घोषित करता है कि परमेश्वर जो हमारी हिफ़ाजत करता है “कभी न ऊंघेगा” (पद.3) l और इस बात पर बल देने के लिए, वह पद.4 में इस सच्चाई को दोहराता है : वह “न ऊंघेगा और न सोएगा l”

क्या कभी आप कल्पना कर सकते हैं? परमेश्वर अपने प्रहरी स्थान पर कभी नहीं सोता है l वह सदैव हमारी हिफ़ाजत करता है – बेटा और बेटी और चाचा और चाची और माता, और पिता सभों की l यह इतना आवश्यक नहीं कि यह उसे करना होगा, परन्तु इसके बदले कि, अपने प्रेम के कारण, वह ऐसा करता है l इस प्रतिज्ञा के विषय गाने लायक है l