मैं उत्तरी इंग्लैंड के लानकशायर में लहरदार, हरियाली से भरी पहाड़ियों को टकटकी नगाहों से देखती रही, पत्थरों के बाड़े जिनके अन्दर कुछ भेड़ पहाड़ियों पर चर रहीं थी l दीप्त आसमान में मोटे बादल उड़ रहे थे और मैंने उस नज़ारे का गहराई से आनंद लिया l जब मैंने रिट्रीट सेंटर की महिला कर्मी से इस खुबसूरत दृश्य के विषय चर्चा की जिसका मैं भ्रमण कर रही थी, उसने कहा, “आप जानती हैं, मैंने अतिथियों के बताने से पूर्व कभी भी यह ध्यान नहीं दिया l हम यहाँ पर वर्षों से रहते हैं; और जब हम किसान थे, यह मात्र कार्यालय था!”

हम सरलता से उस उपहार को खो सकते हैं जो ठीक हमारे सामना है, विशेषकर वह सुन्दरता जो हमारे दैनिक जीवनों का हिस्सा है l हम उन खुबसूरत तरीकों को भी आसानी से भुला सकते हैं जिसके द्वारा परमेश्वर प्रतिदिन हमारे अन्दर और हमारे चारों ओर कार्य करता है l परन्तु यीशु में विश्वासी परमेश्वर की आत्मा से अपनी आत्मिक आँखों को खोलने के लिए कह सकते हैं ताकि हम समझ सकें वह कैसे कार्य करता है, जिस प्रकार पौलुस ने इफिसियों के विश्वासियों को अपने पत्र में लिखा l पौलुस की यह हार्दिक इच्छा थी कि उनकी मन की आँखें ज्योतिर्मय हों कि वे परमेश्वर की आशा, प्रतिज्ञात भविष्य, और सामर्थ्य को जान लें (पद.18-19) l 

मसीह की आत्मा का परमेश्वर का उपहार हमारे अन्दर और हमारे द्वारा उसके कार्य के प्रति हमें जगा सकता है l उसके साथ, जो किसी समय “मात्र एक कार्यालय” दिखाई देता था उसकी ज्योति और महिमा को प्रदर्शित करने वाला एक स्थान के रूप में जाना जा सकता है l