द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब फ़्रांसीसी ग्रामीणों ने यहूदी शरणार्थियों को नाज़ियो(Nazi) से छिपने में मदद की, कुछ लोगों ने अपने शहर के चारोंओर घने जंगल में गीत गाए – और इस प्रकार शरणार्थियों को सूचित किया कि छिपने के स्थान से बाहर निकलना सुरक्षित था l ली-शोमबॉन-शु-लिंग्यु(Le Chambon-sur-Lignon) शहर के बहादुर लोगों ने स्थानीय पासवान आंद्रे ट्रोक्मी और उनकी पत्नी, मैग्डा का युद्ध के समय यहूदियों को उनके “ला मोंटेगने प्रोतेसतान्ते (La Montagne Protestante) नामक असुरक्षित पठार पर शरण देने के आह्वान का उत्तर दिया था l उनका संगीतमय संकेत ग्रामीणों की बहादुरी का केवल एक चिन्ह बन गया जिसने 3,000 यहूदियों तक को लगभग निश्चित मृत्यु से बचाने में सहायता की l

एक और खतरनाक समय में, दाऊद ने गीत गाया जब उसके शत्रु शाऊल ने उसके घर पर रात्रिकालीन हत्यारे भेजे l संगीत का उसका उपयोग एक संकेत नहीं था; बल्कि, वह परमेश्वर के प्रति जो जसका शरणस्थान था एक गीत था l दाऊद आनंदित हुआ, “मैं तेरी सामर्थ्य का यश गाऊंगा, और भोर को तेरी करुणा का जयजयकार करूंगा l क्योंकि तू मेरा ऊंचा गढ़ है, और संकट के समय मेरा शरणस्थान ठहरा है” (भजन 59:16) l

इस प्रकार का गीत गाना खतरे के समय “बहादुरी का अभिनय” नहीं था l इसके बदले, दाऊद का गीत गाना सर्वशक्तिमान परमेश्वर में उसके भरोसे को प्रगट करना था l “हे मेरे बल, मैं तेरा भजन गाऊंगा, क्योंकि हे परमेश्वर, तू मेरा ऊंचा गढ़ और मेरा करुणामय परमेश्वर है” (पद.17) l

दाऊद की प्रशंसा, और ली-शोमबॉन(Le Chambon) में ग्रामीणों का गीत गाना, आज हमें परमेश्वर को धन्य कहने, जीवन की चिंताओं के बावजूद उसकी प्रशंसा करने के लिए निमंत्रण देता है l उसकी प्रेमी उपस्थिति अनुकूल होगी और हमारे हृदयों को सामर्थ्य मिलेगी l