मेरी तीन वर्षीय भतीजी, जेना की एक अभिव्यक्ति है, जो मेरे हृदय को हमेशा द्रवित करता है l जब वह किसी वस्तु से प्यार करती है (वास्तव में उससे प्यार करती है), चाहे वह केला मलाई मिठाई हो, उछाल पट (trumpolines) पर कूदना हो, या फ़्रिसबी(एक प्रकार का खेल) हो, वह ऊंची आवाज़ में बोलती है, “मैं इससे प्यार करती हूँ – समस्त संसार को!” (“समस्त संसार” और नाटकीय तौर से अपनी बाहों से इशारा करती है)

कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है, पिछली बार कब मैंने ऐसा प्यार करने की हिम्मत की थी? कुछ भी अपने अधीन नहीं रखा था, पूरी तौर से अभय?

यूहन्ना ने बार-बार लिखा, “परमेश्वर प्रेम है” (1 यूहन्ना 4:8, 16), शायद इसलिए कि यह सच्चाई कि परमेश्वर का प्रेम – हमारा क्रोध, भय, या लज्जा नहीं – सच्चाई की सबसे गहरी बुनियाद है, हम सयानों के लिए “हासिल करना” कठिन है l संसार हमें उन शिविरों के आधार पर विभाजित करती है जिससे हम सबसे अधिक डरते हैं – और ज़यादातर हम इसमें शामिल हो जाते हैं, वास्तविकता की हमारी पसंदीदा दृष्टि को चनौती देनेवाली आवाजों की अनदेखी करते हैं या उन्हें खलनायक बना देते हैं l

फिर भी धोखे और शक्ति के संघर्ष के बीच (पद.5-6), परमेश्वर के प्रेम का सत्य बना रहता है, एक प्रकाश जो अँधेरे में चमकता है, हमें विनम्रता, विश्वास और प्रेम का मार्ग सीखने के लिए निमंत्रित करता है (1:7-9; 3:18). कोई बात नहीं है कि किस दर्दनाक सच को प्रकाश उजागर करता है, हम जान सकते हैं कि हम अभी उस अवस्था में भी प्यार किये जाते हैं (4:10; रोमियों 8:1) l

जब जेना मेरी ओर झुककर मुझसे फुसफुसाती है, “मैं पूरी दुनिया से प्यार करती हूँ!” मैं भी वापस फुसफुसाती हूँ, “मैं पूरी दुनिया से प्यार करती हूँ!” और मैं एक सौम्य अनुस्मारक के लिए आभारी हूँ कि हर पल मैं असीम प्रेम और अनुग्रह में सुरक्षित हूँ l