“प्रार्थनाएं मृत्युहीन हैं l” ये ई.एम. बौंड्स (1835-1913) के ध्यान आकर्षित करनेवाले शब्द हैं, प्रार्थना के विषय जिनके उत्कृष्ट लेखन ने पीढ़ियों से लोगों को प्रेरित किया है l हमारी प्रार्थनाओं की शक्ति और स्थायी प्रकृति के बारे में उनकी टिप्पणियाँ इन शब्दों के साथ जारी हैं : जिन होठों ने उन्हें उच्चारित किया है मृत्यु उन्हें बंद कर देती हैं, जिस हृदय ने उन्हें महसूस किया वह धड़कना बंद कर दिया, परन्तु प्रार्थना परमेश्वर के सामने रहती हैं, और परमेश्वर का हृदय उनपर लगा हुआ होता है और प्रार्थनाएं उन लोगों के बाद भी जीवित रहती हैं जिन्होनें उन्हें उच्चारित किया था; वे पीढ़ियों के बाद भी जीवित रहती हैं, एक युग के बाद भी जीवित रहती हैं, एक जमाने के बाद भी जीवित रहती हैं l”

क्या आपने कभी विचार किया है कि आपकी प्रार्थनाएँ – विशेषकर जो परेशानी, दुःख, और पीड़ा में जन्मी हैं – कभी परमेश्वर के पास पहुँची होंगी? गहराई तक पहुंचने वाले बौंड्स के शब्द हमारी प्रार्थनाओं के महत्त्व को हमें याद दिलाते हैं और उसी प्रकार प्रकाशितवाक्य 8:1-5 भी l विन्यास स्वर्ग (पद.1), परमेश्वर का सिंहासन कक्ष और सृष्टि का नियंत्रण कक्ष है l स्वर्गदूत के समान सेवक परमेश्वर की उपस्थिति में खड़े हैं (पद.2) और एक स्वर्गदूत खड़े होकर, प्राचीन पुरोहितों की तरह, “[परमेश्वर के] पवित्र लोगों” की प्रार्थनाओं के साथ धूप चढ़ाता है (पद.3) l पृथ्वी पर की गयी प्रार्थनाओं का स्वर्ग में परमेश्वर तक पहुंचना कितनी आँखें खोलने वाली बात और प्रोत्साहित करनेवाली तस्वीर है (पद.4) l जब हम सोचते हैं कि हमारी प्रार्थनाएं मार्ग में खो गयी हैं अथवा भुला दी गयी हैं, तो हम यहाँ जो देखते हैं वह हमें सुकून देता है और हमें अपनी प्रार्थना में बने रहने के लिए मजबूर करता है, क्योंकि हमारी प्रार्थनाएँ परमेश्वर के लिए अनमोल हैं!