Month: नवम्बर 2019

हमारी आशिशें, उसका प्यार

2015 में, एक महिला ने अपने मृत पति के कंप्यूटर को पुनर्चक्रण केंद्र(recycling center) में छोड़ आई – एक कंप्यूटर जो 1976 में बनाया गया था l लेकिन जब इसे बनाया गया था, तो इससे भी अधिक महत्वपूर्ण था कि इसे किसने बनाया था l यह एप्पल(Apple) संस्थापक स्टीव जॉब्स द्वारा बनाए गए 200 कंप्यूटर्स में से एक था, और यह चौथाई मिलियन डॉलर अनुमानित कीमत का था! कभी-कभी किसी चीज की असली कीमत जानने का मतलब होता है बनानेवाले को जानना l

यह जानते हुए कि परमेश्वर ही है जिसने हमें बनाया है हमें बताता है कि हम उसके लिए कितने मूल्यवान हैं (उत्पत्ति 1:27) l भजन 136 उसके लोगों अर्थात् प्राचीन इस्राएल के प्रमुख क्षणों को सूचीबद्ध करता है : किस तरह वे मिस्र के दासत्व से छुडाए गए थे (पद.11-12), जंगल से गुज़रे थे (पद.16), और उनको कनान में नया घर मिला था  (पद.21-22) l परन्तु हर बार जब इस्राएल के इतिहास का उल्लेख किया जाता है उसके साथ इन शब्दों को दोहराया गया है : “उसकी करुणा सदा की है l” इन शब्दों का दोहराया जाना इस्राएल के लोगों को स्मरण दिलाना था कि उनके अनुभव मात्र निरुद्देश्य ऐतिहासिक क्षण नहीं थे l प्रत्येक क्षण परमेश्वर द्वारा निर्धारित था और उसके द्वारा बनाए गए लोगों के लिए उसके स्थायी प्रेम का प्रतिबिम्ब था l

बहुत बार, मैं ऐसे क्षणों को यूँ ही निकल जाने की अनुमति देता हूँ जो परमेश्वर को कार्य करते हुए और उसके उदार तरीकों को दर्शाते हैं, और पहचानने में विफल होता हूँ कि हर एक उत्तम दान स्वर्गिक पिता की ओर से मिलता है (याकूब 1:17) जिसने मुझे बनाया और मुझे  प्यार करता है l काश आप और मैं अपने जीवनों में हर आशीष को अपने परमेश्वर के स्थायी प्रेम से जोड़ना सीख जाएँ l

यह परमेश्वर के ऊपर है

नैट और शेर्लिन ने न्यूयॉर्क शहर की सैर करते वक्त ओमाकेस(omakase) रेस्टोरेंट में रुककर अपने विश्राम का आनंद लिया l ओमाकेस एक जापानी शब्द है जिसका अर्थ है, “मैं आपके ऊपर छोड़ देता हूँ,” जिसका मतलब है कि ऐसे रेस्टोरेंट में ग्राहक शेफ(रसोइया) को अपना भोजन चुनने देते हैं l भले ही यह इस प्रकार के व्यंजनों को आजमाने का उनका पहला मौका था और यह जोखिम भरा लग रहा था, उन्हें शेफ द्वारा चुना गया और तैयार किया गया भोजन पसंद आया l

यह विचार हमारी प्रार्थना अनुरोधों के साथ परमेश्वर के प्रति हमारे रुख़ को आगे ले जा सकता है : “मैं इसे तुम्हारे ऊपर छोड़ दूंगा l” शिष्यों ने देखा कि यीशु “जंगलों में अलग जाकर प्रार्थना किया करता था” (लूका 5:16), इसलिए एक दिन उन्होंने उससे प्रार्थना करना सिखाने का अनुरोध किया l उसने उन्हें अपनी दैनिक आवश्यकताओं, क्षमा, और प्रलोभनों से बाहर निकलने का मार्ग पूछने के लिए कहा l उसके प्रत्युत्तर का एक भाग आत्मसमर्पण का एक दृष्टिकोण भी सुझाता है : “तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो” (मत्ती 6:10) l

हम अपनी ज़रूरतों को परमेश्वर के समक्ष पहुँचा सकते हैं क्योंकि वह सुनना चाहता है कि हमारे हृदय में क्या है – और वह देने में आनंदित होता है l परन्तु मानवीय और परिमित होने के कारण, हम हमेशा यह नहीं जानते हैं कि क्या सर्वोत्तम है, इसलिए यह केवल विनम्र भाव से समर्पण के साथ उससे पूछने में समझदारी है l उत्तर हम उसपर छोड़ सकते हैं, निश्चित रहते हुए कि वह भरोसेमंद है और हमारे लिए सर्वोत्तम का चुनाव करेगा l

स्वर्ग में लावा(भूराल)

फुफकारने वाला लावा(lava) का धीरे-धीरे फैलनेवाला शिकंजा जो उष्णकटिबंधीय(tropical) वनस्पतियों के किनारों का खात्मा कर रहा है को छोड़कर, सब कुछ शांत है l अधिकाँश दिनों में वे इसे “स्वर्ग” कहते हैं l इस दिन, हालाँकि, हवाई के पुना जिला में उग्र दरार/फटन ने सभी को याद दिलाया कि परमेश्वर ने इन द्वीपों को बेहद शक्तिशाली ज्वालामुखीय शक्ति से रचा है l

प्राचीन इस्राएलियों को एक अदम्य शक्ति का सामना करना पड़ा l राजा दाऊद द्वारा वाचा के संदूक को पुनः अपने कब्जे में कर लेने पर (2 शमूएल 6:1-4), एक उत्सव मनाया जाने लगा (पद.5) – जब तक कि अचानक एक व्यक्ति की मृत्यु न हो गयी जब उसने संदूक को पकड़कर स्थिर करने के लिए उसे पकड़ा (पद.6-7) l

यह हमें सोचने के लिए भरमा सकता है कि परमेश्वर ज्वालामुखी की तरह अप्रत्याशित है, जैसे संभवतः वह रचने के साथ-साथ नष्ट भी करनेवाला है l हालाँकि, यह याद रखने में मदद करता है कि परमेश्वर ने इस्राएल को ख़ास निर्देश दिया था कि उसकी उपासना में  निर्धारित वस्तुओं को कैसे संभालना है (देखें गिनती 4) l इस्राएल को परमेश्वर के निकट आने का सौभाग्य प्राप्त था, लेकिन लापरवाही से उसके निकट आने पर उसकी उपस्थिति उनके लिए अत्यधिक अभिभूत करनेवाली थी l

इब्रानियों 12 “आग से प्रज्वलित पहाड़” की याद दिलाता है, जहाँ परमेश्वर ने मूसा को दस आज्ञाएँ दी थीं l उस पहाड़ ने सभी को भयभीत कर दिया (पद.18-21) l परन्तु लेखक उस दृश्य को इसके विपरीत लाता है : “तुम . . .  नयी वाचा के मध्यस्थ यीशु . . . के पास आए हो” (पद.22-24) l यीशु – परमेश्वर का एकलौता बेटा – ने हमारे लिए अपरिचित लेकिन फिर भी प्रेमी पिता के निकट जाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया l

स्थायी प्रार्थना

“प्रार्थनाएं मृत्युहीन हैं l” ये ई.एम. बौंड्स (1835-1913) के ध्यान आकर्षित करनेवाले शब्द हैं, प्रार्थना के विषय जिनके उत्कृष्ट लेखन ने पीढ़ियों से लोगों को प्रेरित किया है l हमारी प्रार्थनाओं की शक्ति और स्थायी प्रकृति के बारे में उनकी टिप्पणियाँ इन शब्दों के साथ जारी हैं : जिन होठों ने उन्हें उच्चारित किया है मृत्यु उन्हें बंद कर देती हैं, जिस हृदय ने उन्हें महसूस किया वह धड़कना बंद कर दिया, परन्तु प्रार्थना परमेश्वर के सामने रहती हैं, और परमेश्वर का हृदय उनपर लगा हुआ होता है और प्रार्थनाएं उन लोगों के बाद भी जीवित रहती हैं जिन्होनें उन्हें उच्चारित किया था; वे पीढ़ियों के बाद भी जीवित रहती हैं, एक युग के बाद भी जीवित रहती हैं, एक जमाने के बाद भी जीवित रहती हैं l”

क्या आपने कभी विचार किया है कि आपकी प्रार्थनाएँ – विशेषकर जो परेशानी, दुःख, और पीड़ा में जन्मी हैं – कभी परमेश्वर के पास पहुँची होंगी? गहराई तक पहुंचने वाले बौंड्स के शब्द हमारी प्रार्थनाओं के महत्त्व को हमें याद दिलाते हैं और उसी प्रकार प्रकाशितवाक्य 8:1-5 भी l विन्यास स्वर्ग (पद.1), परमेश्वर का सिंहासन कक्ष और सृष्टि का नियंत्रण कक्ष है l स्वर्गदूत के समान सेवक परमेश्वर की उपस्थिति में खड़े हैं (पद.2) और एक स्वर्गदूत खड़े होकर, प्राचीन पुरोहितों की तरह, “[परमेश्वर के] पवित्र लोगों” की प्रार्थनाओं के साथ धूप चढ़ाता है (पद.3) l पृथ्वी पर की गयी प्रार्थनाओं का स्वर्ग में परमेश्वर तक पहुंचना कितनी आँखें खोलने वाली बात और प्रोत्साहित करनेवाली तस्वीर है (पद.4) l जब हम सोचते हैं कि हमारी प्रार्थनाएं मार्ग में खो गयी हैं अथवा भुला दी गयी हैं, तो हम यहाँ जो देखते हैं वह हमें सुकून देता है और हमें अपनी प्रार्थना में बने रहने के लिए मजबूर करता है, क्योंकि हमारी प्रार्थनाएँ परमेश्वर के लिए अनमोल हैं!