एक व्यक्ति के जीवन पर डर ने बत्तीस सालों तक राज्य किया l अपने अपराधों के लिए पकड़े जाने के डर से, वह अपनी बहन के फार्महाउस में छिप गया, न कहीं गया और न ही किसी से मिला, यहाँ तक कि अपनी माँ के अंतिम संस्कार में भी उपस्थित नहीं हुआ l जब वह चौंसठ साल का हो गया, उसे ज्ञात हुआ कि उसके विरुद्ध अपराध का कोई मामला दर्ज नहीं हुआ था l वह व्यक्ति स्वाभाविक जीवन जीने के लिए स्वतंत्र था l आवश्य ही, सजा का खतरा वास्तविक था, परन्तु उसने उस डर को उसे नियंत्रित करने की अनुमति दी l

इसी प्रकार, जब पलिश्तियों ने एला की घाटी में इस्राएलियों को चुनौती दी तो उनके ऊपर भय छा गया l खतरा वास्तविक था l उनका शत्रु गोलियात 9 फीट 9 इंच लम्बा था और उसके कवच/बख्तर का वजन 125 पौंड(लगभग 57 किलोग्राम) था l चालीस दिनों तक सुबह और शाम, गोलियात इस्राएली सेना को उसके साथ युद्ध लड़ने की चुनौती देता रहा l लेकिन किसी ने हिम्मत नहीं की l जब तक दाऊद युद्ध भूमि में नहीं पहुँचा तक तक कोई आगे नहीं आया l उसने ताना मारते हुए सुना और देखा, और गोलियात से लड़ने के लिए स्वेच्छा से आगे आया l

जब इस्राएली सेना के सभी लोग सोचते थे कि गोलियात लड़ाई के लिए बहुत बड़ा है, दाऊद चरवाहा लड़का जानता था कि वह परमेश्वर के लिए बहुत बड़ा नहीं था l उसने कहा, “संग्राम तो यहोवा का है, और वही तुम्हें हमारे हाथ में कर देगा” (पद.47) l

डर के चपेट में आने पर, हम दाऊद की मिसाल का अनुसरण करें, और समस्या का सही दृष्टिकोण प्राप्त करने के लिए अपनी नज़रें परमेश्वर की ओर लगाएँ l खतरा वास्तविक हो सकता है, लेकिन जो हमारे साथ और हमारी ओर है वह उससे भी बड़ा है जो हमारे विरुद्ध है l