“कई साल पहले मैं आपके लिए अक्सर प्रार्थना करने के लिए प्रेरित हुयी, और मुझे आश्चर्य है कि क्यों l”

पुराने मित्र का वह नोट एक फोटो के रूप में आया जो उसने अपने बाइबल में रखा था : “जेम्स के लिए प्रार्थना करो l मन, विचारों, शब्दों को ढांक लो l” मेरे नाम के आगे उसने तीन अलग-अलग वर्षों को रिकॉर्ड किया है l 

मैंने वर्षों को देखकर अपनी साँसें रोक लीं l मैंने वापस लिखकर पूछा कि उसने किस माह में प्रार्थना करना आरम्भ की थी l “जुलाई में किसी समय l”

वही महिना था जब मैं विदेश में विस्तारित अध्ययन करने के लिए घर छोड़ने की तैयारी कर रहा था l मैं एक अपरिचित संस्कृति और भाषा का सामना करने वाला था और मेरे विश्वास को ऐसी चुनौती मिलने वाली थी जैसी पहले कभी नहीं मिली थी l जब मैंने उस नोट को देखा, मुझे एहसास हुआ कि मुझे उदार प्रार्थना का अनमोल उपहार मिला है l 

मेरे मित्र की दयालुता ने मुझे प्रार्थना करने के लिए एक और “उकसावे” की याद दिला दी l अपने युवा मिशनरी मित्र तीमुथियुस के लिए पौलुस का निर्देश : “अब मैं सब से पहले यह आग्रह करता हूँ कि विनती, और प्रार्थना, और निवेदन, और धन्यवाद सब मनुष्यों के लिए किए जाएँ” (1 तीमुथियुस 2:1) l वाक्याँश “सबसे पहले” सर्वोच्च प्रार्थमिकता को दर्शाता है l पौलुस समझाता है कि हमारी प्रार्थनाएं मायने रखती हैं, क्योंकि परमेश्वर “चाहता है कि सब मनुष्यों का उद्धार हो, और वे” यीशु के विषय “सत्य को भली भांति पहचान लें” (पद.4) l 

परमेश्वर दूसरों को प्रोत्साहित करने और उन्हें अपने पास खींचने के लिए अनगिनत तरीकों से विश्वासयोग्य प्रार्थना के द्वारा आगे बढ़ता है l हम किसी की परिस्थितियों को नहीं जानते होंगे जब वे हमारे मन में आती हैं, लेकिन परमेश्वर जानता है l और जब हम प्रार्थना करेंगे वह उस व्यक्ति की सहायता करेगा!