वैज्ञानिक जानते हैं कि हमारा गृह सूर्य से उसके ताप का लाभ प्राप्त करने के लिए बिलकुल ठीक दूरी पर स्थित है l थोड़ा निकट और सारा पानी वाष्पित हो जाता, जैसा कि शुक्र गृह पर है l केवल थोड़ी दूर और सब कुछ जम जाता जैसा कि मंगल ग्रह पर है l सही मात्रा में गुरुत्वाकर्षण उत्पन्न करने के लिए पृथ्वी का आकार बिलकुल सही है l कम हमारे चाँद की तरह सब कुछ को भारहीन के साथ निष्प्राण बना देता, जबकि अधिक गुरुत्वाकर्षण जहरीली गैसों को आकर्षित करता जो बृहस्पति पर जीवन का दम घोंटती है l
जटिल भौतिक, रासायनिक और जैविक अन्तःक्रियाएं जिससे हमारा संसार बना है पर एक प्रबुद्ध अभिकल्पक (sophisticated Designer) की छाप है l हमें इस जटिल शिल्प कौशल की एक झलक मिलती है जब परमेश्वर अय्यूब से हमारी समझ से परे चीजों के विषय बातें करता है l परमेश्वर पूछता है, “जब मैं ने पृथ्वी की नींव डाली, तब तू कहाँ था? यदि तू समझदार हो तो उत्तर दे l उसकी नाप किसने ठहराई, क्या तू जानता है! उस पर किसने सूत खींचा? उसकी नींव कौन सी वस्तु पर रखी गयी, या किसने उसके कोने का पत्थर बिठाया?” (अय्यूब 38:4-6) l
सृष्टि की विशालता की यह झलक हमें आश्चर्यचकित कर देती है जब पृथ्वी के शक्तिशाली महासागर उसके समक्ष दंडवत करते हैं जिसने “जब समुद्र ऐसा फूट निकला मानो वह गर्भ से फूट निकला, तब किसने द्वार बंदकर के उसको रोक दिया; . . . [जिसने कहा] ‘यहाँ तक आ, और आगे न बढ़,’” (पद.8-11) l आश्चर्य में हम भोर के तारों के साथ गाएँ और स्वर्गदूतों के साथ जयजयकार करें (पद.7), क्योंकि संसार हमारे लिए बनाया गया था कि हम परमेश्वर को जान जाएँ और उस पर भरोसा करें l
आज किस प्रकार परमेश्वर की अद्भुत सृष्टि आपको उसे सराहने के लिए विवश करती है? इसकी अभिकल्पना की कौन सी बात एक निर्माता को प्रगट करती है?