जब सिंगापुर के एक विवादास्पद कानून पर सार्वजनिक बहस छिड़ गयी, तो उसने विश्वासियों को अलग-अलग विचारों से विभाजित किया l कुछ ने दूसरों को “संकीर्ण सोच वाले” कहा या उन पर अपने विश्वास से समझौता करने का आरोप लगाया l 

विवादों से परमेश्वर के परिवार के बीच तीखे मतभेद पैदा हो सकते हैं, जिससे लोग बहुत आहात और हतोत्साहित होंगे l मैं अपने जीवन पर बाइबल की शिक्षाओं को कैसे लागू करूँ,  इस पर व्यक्तिगत आक्षेपों को महसूस करने में मैंने खुद को दीन पाया है l और मुझे यकीन है कि मैं दूसरों की अओचना करने के लोए सामान रूप से दोषी हूँ, जिनसे मैं असहमत हूँ l 

मुझे आश्चर्य है कि शायद समस्या हमारे विचार क्या हैं या उनको व्यक्त करने के तरीके में नहीं है, परन्तु ऐसा करते समय हमारे हृदयों के नजरिये में है l क्या हम सिर्फ विचारों से असहमत हैं या उनके पीछे के व्यक्तित्वों को फाड़ने की कोशिश कर रहे हैं?

फिर भी ऐसे समय होते हैं जब हमें झूठी शिक्षा को संबोधित करने या अपने रुख को स्पष्ट करने की आवश्यकता होती है l इफिसियों 4:2-6 हमें दीनता, नम्रता, धीरज और प्रेम के साथ ऐसा करने की याद दिलाता है l और, सब से ऊपर, “आत्मा की एकता रखने” के लिए हर प्रयास करने के लिए (पद.3) l 

कुछ विवाद अनसुलझे रहेंगे l हालाँकि, परमेश्वर का वचन हमें याद दिलाता है कि हमारा लक्ष्य हमेशा लोगों के विश्वास का निर्माण करना होना चाहिए, उन्हें फाड़ना नहीं चाहिए (पद. 29) l क्या हम एक तर्क जीतने के लिए दूसरों को नीचे रख रहे हैं? या क्या हम परमेश्वर को अपने समय और अपने तरिके से उसकी सच्चाइयों को समझने में मदद करने की अनुमति दे रहे हैं, यह याद करते हुए कि हम एक परमेश्वर में एक विश्वास साझा करते हैं? (पद.4-6) l