1948 में, एक भूमिगत चर्च के पादरी, हार्लेन पोपोव को उनके घर से “थोड़ी पूछताछ” के लिए ले जाया गया l दो सप्ताह बाद, उससे चौबीसों घंटे पूछताछ की गयी और दस दिनों तक भोजन नहीं दिया गया l हर बार उसने जासूस होने से इनकार किया, तो उसे पीटा गया l पोपोव न केवल अपने कठोर बर्ताव से बचे, बल्कि अपने साथी कैदियों को भी यीशु के पास ले आए l अंत में, ग्यारह साल बाद, उन्हें रिहा कर दिया गया और उन्होंने अपने विश्वास को साझा करना जारी रखा जब तक कि, दो साल बाद, वह उस देश को छोड़ कर पुनः अपने परिवार से जुड़ नहीं गए l वे आनेवाले वषों में बंद देशों में बाइबल वितरित करने हेतु प्रचार करते रहे और धन इकठ्ठा करते रहे l
यूगों से यीशु में अनगिनत विश्वासियों की तरह, पोपोव को उनके विश्वास के कारण सताया गया था l मसीह, अपनी खुद की यातना और मृत्यु और उसके अनुयायियों के समक्ष बाद में आने वाले उत्पीडन से बहुत पहले कहा था, “धन्य हैं वे, जो धर्म के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है” (मत्ती 5:10) l वह आगे कहता है, “धन्य हो तुम जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निंदा करें, और सताएं और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बातें कहें” (पद.11) l
“धन्य”? यीशु का क्या मतलब हो सकता है? वह उसके साथ रिश्ते में मिलनेवाली पूर्णता, आनंद और आराम का जिक्र कर रहा था (पद. 4, 8-10) l पोपोव दृढ़ रहा क्योंकि उसने महसूस किया कि परमेश्वर की उपस्थिति उसके कष्ट में भी शक्ति प्रदान कर रही थी l जब हम परमेश्वर के साथ चलते हैं, तो हमारी परिस्थितिचाहे कुछ भी हो, हम भी उसकी शांति का अनुभव कर सकते हैं l वह हमारे साथ है l
आप किस धन्य वचन से तादात्म्य स्थापित करते हैं, और क्यों? आपने किसी आजमाइश में परमेश्वर की शांति और उपस्थिति कब महसूस किया है?
प्रेमी पिता, हमारे सबसे अंधकारमय समयों में हमें नहीं छोड़ने या त्यागने के लिए हम आपको धन्यवाद देते हैं l