उनका विषय नस्लीय तनाव था l फिर भी वक्ता शांत और संयमित रहा l बड़ी संख्या में  दर्शकों के सामने मंच पर खड़े होकर, उन्होंने निर्भीकता से बात की – लेकिन अनुग्रह, विनम्रता, दया और यहाँ तक कि हास्य के साथ l जल्द ही तनावपूर्ण दर्शकों ने प्रत्यक्ष रूप से आराम महसूस किया, और वक्ता के साथ उस असमंजस के विषय हँसे जिसका वे सामना कर रहे थे : अपने गर्म मुद्दे को कैसे हल करें, लेकिन अपनी भावनाओं और शब्दों को शांत करें l हाँ, मीठे अनुग्रह के साथ एक खट्टे विषय से कैसे निपटें l
राजा सुलैमान ने हम सभी के लिए इसी पद्धति की सलाह दी : “मनभावने वचन मधुभारे छत्ते के समान प्राणों को मीठे लगते, और हड्डियों को हरी-भरी करते हैं” (नीतिवचन 16:24) l इस तरह, “बुद्धिमान का मन . . . बुद्धिमानी प्रगट करता है” (पद.23) l
सुलैमान जैसा शक्तिशाली राजा यह कहने के लिए समय क्यों देता कि हम कैसे बोलते हैं? क्योंकि शब्द नष्ट कर सकते हैं l सुलैमान के समय में, राजा अपने राष्ट्रों के बारे में जानकारी के लिए दूतों पर निर्भर थे, और शांत और विश्वसनीय दूत अत्यधिक महत्वपूर्ण थे l उन्होंने विवेकपूर्ण शब्दों का प्रयोग किया और तर्कपूर्ण शब्दों का उपयोग किया, मामले के बावजूद अतिशियोक्ति नहीं की या कठोरता से बात नहीं की l
हम सब अपनी राय और विचारों को ईश्वरीय और विवेकपूर्ण मिठास से सजाकर लाभ प्राप्त कर सकते हैं l सुलैमान के शब्दों में, “मन की युक्ति मनुष्य के वश में रहती है, परन्तु मुँह से कहना यहोवा की ओर से होता है” (पद.1) l