जैसे ही अमेरिकी क्रांति ने इंग्लैंड के असंभव समर्पण के साथ समाप्त हुआ, कई नेताओं और सेना के नेताओं ने जनरल जॉर्ज वाशिंगटन को एक नया शासक बनाने का प्रयास किया l दुनिया देखती रही, और सोचती रही कि क्या वाशिंगटन स्वतंत्रता और छुटकारे के अपने आदर्श से चिपका रहेगा जब सम्पूर्ण शक्ति उसकी मुट्ठी में थी l इंग्लैंड के किंग जॉर्ज ने हालाँकि एक और वास्तविकता देखी l वह आश्वस्त था कि यदि वाशिंगटन ने शक्ति खींचाव का विरोध करेगा और अपने वर्जिनिया फार्म(राष्ट्रपतियों का निवास) में लौट जाएगा, तो वह “संसार का सबसे बड़ा आदमी” होगा l राजा यह जानता था कि सत्ता के प्रति आकर्षण के विरोध की महानता का सबूत सच्ची श्रेष्ठता और गौरव का प्रतिक है l
पौलुस इस सच्चाई को जानता था और हमें मसीह के विनम्रता के तरीके का दीनता से अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित किया l यीशु “परमेश्वर के स्वरुप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा” (फिलिप्पियों 2:6) l इसके बदले, उसने अपनी सामर्थ्य को समर्पित किया, एक “दास” बन गया और “यहाँ तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु . . . भी सह ली” (पद.7-8) l जिसके पास समस्त सामर्थ्य थी उसने प्रेम की खातिर उसके हर एक अंश को समर्पित कर दिया l
और फिर भी, अंतिम परिवर्तन में, परमेश्वर ने मसीह को एक अपराधी के क्रूस से आगे “अति महान भी किया” (पद.9) l यीशु, जो हमारी प्रशंसा की मांग कर सकता था या हमें आज्ञाकारी होने को विवश कर सकता था, ने एक विस्मयकारी कार्य में होकर हमारी आराधना और भक्ति को लिया l परम विनम्रता के द्वारा, यीशु ने सच्ची महानता का प्रदर्शन करके, संसार को उलट दिया l
यीशु की विनम्रता की गहराई आपको कैसे आश्चर्यचकित करती है? किस तरह उनकी विनम्रता आपको महानता की अपनी परिभाषा पर पुनःविचार करने के लिए मजबूर करती है?
धन्यवाद, यीशु, कि आपने सबसे निराश्रित और (कदाचित) अपमानजनक क्षण में, आपने अपनी असली सामर्थ्य और महानता का प्रदर्शन किया l