कई साल पहले, मेरी पत्नी और मैं एक छोटे से चर्च में गए जहां आराधना के दौरान एक स्त्री गलियारे में नाचने लगी l जल्द ही दूसरे उसके साथ जुड़ गए l कैरोलिन और मैंने एक-दूसरे को देखा और हमारे बीच एक अनकहा समझौता हुआ : “मैं नहीं!” हम ऐसे चर्च परम्पराओं से आते हैं जो एक गंभीर रीतिरिवाज़ का पक्षधर है, और यह दूसरी प्रकार की आराधना हमारी आरामदेह स्थिति(comfort zone) के कहीं परे थी l

लेकिन यदि मरियम की “बर्बादी” के बारे में मरकुस की कहानी का कुछ भी मतलब है, तो यह सुझाव देता है कि यीशु के लिए हमारा प्यार खुद को उन तरीकों से व्यक्त कर सकता है जो दूसरों को असहज लगते हैं (मरकुस 14:1-9) l मरियम के अभिषेक में एक साल की मजदूरी शामिल थी l यह एक “नासमझ” कार्य था जिसने शिष्यों के तिरस्कार को आमंत्रित किया l मरकुस उनकी प्रतिक्रिया को समझाने के लिए जिस शब्द का उपयोग करता है उसका अर्थ  “सूंघना/सूंघ कर लेना” और तुच्छ समझना और मज़ाक है l यीशु की प्रतिक्रिया से डरकर मरियम घबरा गयी होगी l लेकिन उसने उसकी भक्ति के कार्य की प्रशंसा की और अपने खुद के शिष्यों के विरुद्ध उसका बचाव किया, क्योंकि यीशु ने उस प्रेम को देखा जिसने उसके कार्य को प्रेरित किया, बावजूद इसके कि उसके कार्य के अव्यवहारिक स्वभाव पर कुछ लोग क्या कहेंगे l उसने कहा, “उसे छोड़ दो; उसे क्यों सताते हो? उस ने तो मेरे साथ भलाई की है” (पद.6) l

अलग-अलग प्रकार की आराधना – अनौपचारिक, औपचारिक, शांत, विपुल – यीशु के लिए प्रेम के एक ईमानदार उद्गार का प्रतिनिधित्व करती है l वह सभी आराधना के योग्य है जो प्रेम के हृदय से निकलती है l