एक प्राचीन कहानी एक लालची, अमीर ज़मींदार के विषय बतायी गई है जिसने एक गरीब किसान को घर के साथ कुआँ बेचा l अगले दिन जब किसान ने अपने खेतों के लिए पानी खींचना चाहा, तो ज़मींदार ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि उसने केवल कुआँ बेचा है, उसमें का पानी नहीं l व्याकुल होकर, किसान ने राजा अकबर के दरबार में न्याय माँगा l इस अज़ीबोगरीब मामले को सुनने के बाद, राजा ने सलाह के लिए अपने बुद्धिमान मंत्री बीरबल की ओर रुख किया l बीरबल ने ज़मींदार से कहा, “सच है, कुएँ का पानी किसान का नहीं है और  कुआँ तुम्हारा नहीं है l इसलिए यदि तुम किसान के कुएँ में पानी जमा करना चाहते हो तो भला है कि तुम उस जगह के लिए किराए का भुगतान करो l”  तुरंत जमींदार समझ गया कि वह मात खा गया है, और उसने घर और कुएँ पर अपने दावों को छोड़ दिया l

शमूएल ने भी अपने पुत्रों को इस्राएल के ऊपर न्यायी नियुक्त किया, और वे लालच से प्रेरित थे l उसके बेटे “उसकी राह पर न चले” (1 शमूएल 8:3) l शमूएल की ईमानदारी की तुलना में,  उसके बेटे “लालच में आकर घुस लेते और न्याय बिगाड़ते थे” और अपने लाभ के लिए अपने स्थिति का उपयोग करने लगे l इस अन्यायपूर्ण व्यवहार ने इस्राएल के वृद्धों और परमेश्वर को नाराज़ किया, और राजाओं का एक क्रम आरंभ हुआ जिससे पुराना नियम के पन्ने भरे पड़े हैं (पद.4-5) l

परमेश्वर के तरीकों पर चलने से इनकार करना उन मूल्यों के विकृत होने की अनुमति देता है, और परिणामस्वरूप अन्याय पनपता है l उसके तरीके से चलने का मतलब ईमानदारी और न्याय केवल हमारे शब्दों में ही नहीं बल्कि हमारे कर्मों में भी स्पष्ट रूप से देखा जाता है l वे अच्छे काम कभी अपने आप में अंत नहीं होते, लेकिन हमेशा ऐसे होते है कि दूसरे देखेंगे और हमारे स्वर्गिक पिता की महिमा करेंगे l