इसका कोई तार्किक अर्थ नहीं है, लेकिन जब मेरे माता-पिता तीन महीने की अवधि के भीतर मर गए, तो मुझे डर था कि वे मुझे भूल जाएंगे l बेशक वे अब धरती पर नहीं थे, लेकिन इसने मुझे बड़ी अनिश्चितता के साथ छोड़ दिया l मैं एक युवा, अविवाहित वयस्क थी और सोचता थी कि उनके बिना जीवन को कैसे चलाऊंगी l वास्तव में अविवाहित और अकेला महसूस करते हुए, मैंने परमेश्वर को तलाशा l
एक सुबह मैंने उसे अपने तर्कहीन भय और उसके द्वारा लाई गई उदासी के बारे में बताया (भले ही वह उसे पहले से जानता था) l उस दिन मैंने ध्यान के लिए पवित्रशास्त्र का जो पाठ पढ़ा था, वह यशायाह 49 था : “क्या यह हो सकता है कि कोई माता अपने दूधपीते बच्चे को भूल जाए . . . ? हाँ, वह तो भूल सकती है, परन्तु मैं तुझे नहीं भूल सकता” (पद.15) l परमेश्वर ने यशायाह के द्वारा अपने लोगों को आश्वस्त किया कि वह उन्हें नहीं भूला है और बाद वह अपने पुत्र यीशु को भेजने के द्वारा उन्हें अपने पास पुनर्स्थापित करने का वचन दिया l लेकिन ये शब्द मेरे दिल को भी भा गए l माता या पिता के लिए अपने बच्चे को भूलना दुर्लभ है, फिर भी यह संभव है l लेकिन परमेश्वर? बिल्कुल नहीं l “मैंने तेरा चित्र अपनी हथेलियों पर खोदकर बनाया है,” उसने कहा l
मेरे लिए परमेश्वर का जवाब अधिक भय ला सकता था l लेकिन उसने खुद मुझे याद किया जिससे मुझे शांति मिली, और वह वही था जिसकी मुझे जरूरत थी l यह इस खोज की शुरुआत थी कि परमेश्वर किसी माता-पिता या किसी और से भी अधिक निकट है, और वह हमें हर चीज से मदद करने का तरीका जानता है – यहां तक कि हमारे अतार्किक भय भी l
आपको किस डर का सामना करना पड़ता है? आप उन्हें संबोधित करने के लिए परमेश्वर की मदद कैसे ले सकते हैं?
हे पिता, मेरी भावनाएँ और भय अभिभूत करने वाले और नियंत्रित करने वाले हो सकते हैं l उनको हल करने में मेरी मदद करने के लिए धन्यवाद l