हाल ही में एक बदलाव के बाद, माधुरी के सात वर्षीय बेटे, रोहित ने परेशान किया, जब वह अपने नए स्कूल में अतिरिक्त कक्षाओं में भाग लेने के लिए तैयारी कर रहा था l माधुरी ने उसे प्रोत्साहित किया, उसे आश्वस्त करते हुए कि वह समझती है कि बदलाव कठिन था l लेकिन एक सुबह, रोहित का चारित्रिक रवैया का रूखापन अत्यधिक महसूस हुआ l करुणा के साथ, माधुरी ने पूछा, “बेटा, तुम्हें कौन सी बात परेशान कर रही है?”
खिड़की से बाहर झांकते हुए रोहित ने अपने कंधे सिकोड़े l “माँ, मैं नहीं जानता l मेरे अन्दर बहुत सारी भावनाएँ हैं l”
रोहित को ढाढ़स देते हुए माधुरी का दिल दुखा l उसकी मदद करने के लिए बेताब, उसने साझा किया कि उसके लिए भी वह कदम उठाना कठिन था l उसने रोहित को विश्वास दिलाया कि परमेश्वर उसके करीब रहेगा, वह सब कुछ जानता है, तब भी जब वे अपनी कुंठाओं को समझ नहीं सकते या आवाज़ नहीं दे सकते l “आओ स्कूल शुरू होने से पहले तुम्हारे मित्रों के साथ एक मुलाकात करें,” उसने कहा l उन्होंने योजनाएँ बनाईं, आभारी होते हुए कि परमेश्वर समझता है उस समय भी जब उसके बच्चों में “बहुत अधिक भावनाएं” होती हैं l
भजन 147 के लेखक ने अपनी विश्वास यात्रा में भावनाओं का अत्यधिक अनुभव किया और सर्वज्ञानी सृष्टिकर्ता और सभी का संभालनेवाला, शारीरिक और भावनात्मक घावों को चंगा करनेवाला की प्रशंसा करने के लाभों को मान्यता दी (पद.1-6) l वह परमेश्वर के प्रबंध करने के तरीकों के लिए उसकी प्रशंसा करता है और “जो उसकी करुणा की आशा लगाए रहते हैं” उनसे प्रसन्न होता है (पद.11) l
जब हम अपनी बदलती भावनाओं को सार्थक बनाने के लिए संघर्ष कर रहे होते हैं, तो हमें अकेला या हतोत्साहित नहीं होना चाहिये l हम अपने न बदलने वाले परमेश्वर के शर्तहीन प्यार और असीमित समझ में आराम कर सकते हैं l
जब आप अपनी भावनाओं को संसाधित करते हैं, तो परमेश्वर को जानना आपकी अंतरंग आवश्यकताओं को समझने में आपकी कैसे मदद करता है? परमेश्वर के पराक्रमी और दयालु हाथों में कौन सी भावनाएँ रखना सबसे कठिन हैं?
सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मुझे निश्चिय देने के लिए धन्यवाद कि आप मेरी भावनात्मक और शारीरिक ज़रूरतों को समझते हैं और उनकी परवाह करते हैं l