“अगर मैं किसी बाइबिल को छूती, तो मेरे हाथों में आग लग जाती,” मेरे कॉलेज के अंग्रेजी के प्रोफेसर ने कहा । मेरा दिल बैठ गया । उस सुबह हम जो उपन्यास पढ़ रहे थे, उसमें बाइबल के  एक पद का सन्दर्भ दिया गया था, और जब मैंने इसे देखने के लिए अपनी बाइबल निकाली, तो उसने देखा और टिप्पणी की । मेरे प्रोफेसर को लगता था कि वह क्षमा प्राप्त करने के लिए बहुत पापी थी l फिर भी मैं उसे परमेश्वर के प्यार के बारे में बताने के लिए बहुत दृढ़ नहीं थी – और कि बाइबल बताती है कि हम हमेशा परमेश्वर से क्षमा मांग सकते हैं ।

नहेमायाह में पश्चाताप और क्षमा का एक उदाहरण है । इस्राएलियों को उनके पाप के कारण निर्वासित किया गया था, लेकिन अब उन्हें यरूशलेम लौटने की अनुमति दी गई थी । जब वे “बस गए,” तो एज्रा शास्त्री ने उन्हें व्यवस्था पढ़कर सुनाया (नहेमायाह 7:73–8:3) । उन्होंने अपने पापों को स्वीकार किया, यह याद करते हुए कि उनके पाप के बावजूद परमेश्वर ने उनको  “नहीं त्यागा” या “दूर नहीं किया” (9:17,19 Hindi-C.L.)। जब उन्होंने पुकारा, तो उसने “उनकी पुकार सुनी”; और करुणा और दया में, वह उनके साथ धीरज धरता रहा (27–31) ।

उसी तरह, परमेश्वर हमारे साथ धैर्यवान है । यदि हम अपने पाप को कबूल करना चाहते हैं और उसकी ओर मुड़ना चाहते हैं l काश मैं वापस जाकर अपने प्रोफेसर को बता सकती कि, उसके अतीत से कोई फर्क नहीं पड़ता, यीशु उससे प्यार करता है और चाहता है कि वह उसके परिवार का हिस्सा बने । वह आपके और मेरे बारे में ऐसा ही महसूस करता है । हम क्षमा मांगते हुए उससे संपर्क कर सकते हैं — और वह दे देगा!