जब मैं एक नए देश में गया, तो मेरे पहले अनुभवों में से एक ने मुझे अवांछनीय महसूस कराया । उस दिन छोटे से चर्च में एक सीट मिलने के बाद, जहाँ मेरे पति प्रचार कर रहे थे, एक अशिष्ट वृद्ध सज्जन ने मुझे चौंका दिया, जब उन्होंने कहा, “और पीछे की ओर बढ़िए l” उनकी पत्नी ने माफी मांगी क्योंकि उन्होंने बताया कि मैं हमेशा उनके कब्जे वाले बेंच में बैठी थी l वर्षों बाद मुझे पता चला कि मण्डली ने बेंचों को किराए पर दिया करती थी, जिसने चर्च के लिए धन जुटाया जा सके और यह भी सुनिश्चित किया जाए कि कोई भी व्यक्ति दूसरे की सीट नहीं ले सकता । जाहिर है कि वह मानसिकता कुछ दशकों तक चलती रही l
बाद में, मैंने इस बात पर विचार किया कि कैसे परमेश्वर ने इस्राएलियों को परदेशियों का स्वागत करने का निर्देश दिया, सांस्कृतिक प्रथाओं के विपरीत जिसका सामना मैंने किया l उन व्यवस्थाओं को स्थापित करने में जो उनके लोगों को फलने-फूलने देंगे, उसने उन्हें परदेशियों का स्वागत करने के लिए याद दिलाया क्योंकि वे खुद एक समय परदेशी थे (लैव्यव्यवस्था 19:34) । केवल उन्हें परदेशियों के साथ दयालुता (पद.33) ही नहीं बरतनी थी, बल्कि उन्हें उनसे “अपने ही समान प्रेम रखना” था” (पद.34) । परमेश्वर ने उन्हें मिस्र में उत्पीड़न से बचाकर, उन्हें एक देश दिया था जिसमें “दूध और मधु” की धाराएँ बहती हैं (निर्गमन 3:17) । वह उम्मीद करता था कि उसके लोग दूसरों से प्यार करेंगे, जिन्होंने अपना घर वहां बनाया था l
जब आप अपने बीच में अजनबियों से सामना करते हैं, परमेश्वर से किसी भी सांस्कृतिक प्रथाओं को प्रकट करने के लिए कहें जो आपको उनके साथ अपने प्यार को साझा करने से रोक सकते हैं ।
यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है कि हम अपने घरों और चर्चों में लोगों का स्वागत करें? इसमें आपको सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण और सबसे अधिक फायदेमंद क्या लगता है?
हे पिता परमेश्वर, आप खुली बाहों से मेरा स्वागत करते हैं, क्योंकि आप मुझे दिन-प्रतिदिन प्यार करते हैं । मुझे अपना प्यार दूसरों के साथ साझा करने के लिए दें ।