किसी के द्वारा उसे नया नियम दिए जाने के बाद डेनिस का जीवन बदल गया था । इसे पढ़कर वह मोहित हो गया,  और यह उसका निरंतर साथी बन गया । छह महीने के भीतर,  उसके जीवन में दो जीवन-परिवर्तन की घटनाएं हुईं । उसने अपने पापों की क्षमा के लिए यीशु पर अपना विश्वास रखा और गंभीर सिरदर्द का अनुभव करने के बाद उसे ब्रेन ट्यूमर का पता चला । असहनीय दर्द की वजह से,  वह बिस्तर पर पड़ गया और काम करने में असमर्थ हो गया । एक दर्दनाक, अनिद्र रात में उसने खुद को परमेश्वर को पुकारता हुआ पाया l  आखिरकार नींद सुबह 4:30 बजे आई ।

शारीरिक पीड़ा हमें ईश्वर को पुकारने का कारण बन सकती है,  लेकिन अन्य कष्टदायी जीवन परिस्थितियां भी हमें उसके पास जाने के लिए मजबूर करती हैं । डेनिस की कुश्ती की रात से शताब्दियों पहले, हताश याकूब का सामना परमेश्वर के साथ हुआ (उत्पत्ति 32:24–32) । याकूब के लिए, यह अधूरा पारिवारिक मुद्दा था । उसने अपने भाई एसाव के साथ अन्याय किया था (अध्याय 27),  और उसे डर था कि भुगतान/payback आसन्न था । इस कठिन परिस्थिति में परमेश्वर की सहायता लेने के लिए,  याकूब ने परमेश्वर का सामना आमने-सामने किया (32:30) और इससे एक परिवर्तित व्यक्ति के रूप में उभर कर निकला l

और ऐसा ही डेनिस ने किया । प्रार्थना में परमेश्वर से विनती करने के बाद,  डेनिस बिस्तर पर से खड़े होने में सक्षम था,  और डॉक्टर की जांच में ट्यूमर के कोई संकेत नहीं मिले । हालाँकि परमेश्वर हमेशा हमें चमत्कारिक रूप से ठीक नहीं करता है,  लेकिन हमें विश्वास है कि वह हमेशा हमारी प्रार्थना सुनता है और हमें वह देगा जो हमारी स्थिति के लिए आवश्यक है । हमारी हताशा में हम परमेश्वर से ईमानदारी से प्रार्थना करते हैं और परिणाम उसके ऊपर छोड़ देते हैं!