मेरे साक्षात्कार के अतिथि ने विनम्रता से मेरे सवालों का जवाब दिया । हालाँकि, मुझे लग रहा था कि हमारी बातचीत के पीछे कुछ छुपी हुई है l एक गुजरती टिप्पणी ने इसे बाहर ला दिया l
“आप हजारों लोगों को प्रेरित कर रहे हैं,” मैंने कहा ।
“हजारों नहीं,” उन्होंने कहा । “लाखों ।”
और जैसे कि मेरी अज्ञानता पर तरस खाते हुए, मेरे अतिथि ने मुझे अपनी साख/प्रत्यायक याद दिलायी – उपाधियाँ जो उनके पास थीं, चीजें जो उन्होंने हासिल की थीं, वह पत्रिका जो उन्होंने गढ़ी/सजाई थी । यह एक अजीब क्षण था ।
उस अनुभव के बाद से, मैं इस बात से प्रभावित हुआ कि परमेश्वर ने सीनै पर्वत पर खुद को मूसा के सामने कैसे प्रकट किया (निर्गमन 34:5-7) । यहाँ पर कायनात और मानवता का न्यायी था, लेकिन परमेश्वर ने अपनी संज्ञा, अपने नाम का उपयोग नहीं किया । यहां 100 बिलियन/असंख्य आकाशगंगाओं का रचयिता था, लेकिन इस तरह की योग्यताओं का उल्लेख भी नहीं किया गया था । इसके बजाय, परमेश्वर ने स्वयं को “दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवंत, और अति करुणामय और सत्य” के रूप में पेश किया (पद.6) l जब वह प्रगट करता है कि वह कौन है, तो वह अपनी उपाधियों या उपलब्धियों को सूचीबद्ध नहीं करता है लेकिन उसके पास जिस तरह का चरित्र है ।
परमेश्वर की छवि में बनाए हुए और उसके उदाहरण का पालन करने के लिए बुलाए गए लोगों के रूप में (उत्पत्ति 1:27; इफिसियों 5:1-2), यह गंभीर है । उपलब्धि अच्छी है, उपाधियों का अपना स्थान है, लेकिन वास्तव में यह महत्वपूर्ण है कि हम कितने दयालु, अनुग्रहकारी, और प्रेमी बन रहे हैं l
उस साक्षात्कार अतिथि की तरह, हम भी अपने महत्व को उपलब्धियों पर आधारित कर सकते हैं l मैंने किया है l लेकिन हमारे परमेश्वर ने प्रतिमान बनाया है कि सच्ची सफलता क्या है – वह नहीं जो हमारे व्यवसाय कार्ड और रिज्युमे(resume) पर लिखा है, लेकिन हम उनके जैसे कैसे बन रहे हैं ।
अपने महत्व को अपनी उपलब्धियों पर आधारित करने के लिए आप कितने प्रलोभित हैं? परमेश्वर के चरित्र के किस पहलू को आज आप में बढ़ने की जरूरत है?
ईश्वर की आत्मा, मुझे दयालु, अनुग्रहकारी, धीरजवन्त और प्रेमी बनाइए!