बादल नीचे होने के कारण, क्षितिज को अवरुद्ध कर दिया और दृश्यता को केवल कुछ सौ गज तक सीमित कर दिया l मिनट लम्बे होते चले गए l मेरे मिजाज़ पर प्रभाव ध्यान देने योग्य था l लेकिन फिर,  जैसे-जैसे दोपहर करीब आता गया,  बादल फटने लगे, और मैंने इसे देखा : खूबसूरत पहाड़;  मेरे शहर का सबसे अधिक पहचानने योग्य सीमा चिन्ह,  हर तरफ पर्वत श्रृंखला l मेरे चेहरे पर एक मुस्कान फूट पड़ी l मैंने विचार किया कि हमारे भौतिक दृष्टिकोण भी – हमारे देखने की वास्तविक रेखा – हमारी आध्यात्मिक दृष्टि को प्रभावित कर सकती है l और मुझे भजनकार की बात याद आयी, “मैं अपनी आँखें पर्वतों की ओर लगाऊंगा” (भजन 121:1) l   कभी-कभी बस हमें अपनी आंखें थोड़ी ऊंची करने की जरूरत होती है!

भजनहार ने सोचा कि उसकी मदद कहाँ से आती है, शायद इसलिए कि इस्राएल के आसपास के पहाड़ मूर्तियों को समर्पित वेदियों से भरे पड़े थे और अक्सर लुटेरे वहां मौजूद रहते थे l या हो सकता था क्योंकि भजनकार ने पहाड़ियों के पार सिय्योन पर्वत की ओर देखा जहाँ मंदिर खड़ा था, और याद किया कि पृथ्वी और स्वर्ग का सृष्टिकर्ता वाचा का उसका परमेश्वर था (पद.2) l किसी भी तरह, आराधना करने के लिए हमें ऊपर देखना होता है l हमें अपनी परिस्थितियों के ऊपर, अपनी परेशानियों और आजमाइशों के ऊपर, हमारे समय के झूठे ईश्वरों की खोखली प्रतिज्ञाओं के ऊपर अपनी आँखें उठानी होती है l तब हम सृष्टिकर्ता और उद्धारक को देख सकते हैं,  जो हमें नाम से पुकारता है l यह वही है जो आज और हमेशा के लिए “तेरे आने जाने में तेरी रक्षा अब से लेकर सदा तक करता रहेगा” (पद.8) l