जॉर्ज व्हाइटफ़ील्ड (1714–1770) इतिहास के सबसे प्रतिभाशाली और प्रभावी प्रचारकों में से एक थे, जिन्होंने हजारों को यीशु में विश्वास करने में अगुवाई की l लेकिन उनका जीवन विवाद से परे नहीं था l घर के बाहर प्रचार करने की उनकी पद्धति (बड़ी भीड़ को समायोजित करने के लिए) की कभी-कभी उन लोगों द्वारा आलोचना की जाती थी जिन्होंने उनके उद्देश्यों पर सवाल उठाए और उन्हें लगा कि उन्हें चर्च की इमारत की चार दीवारों के भीतर ही प्रचार करना चाहिए l व्हाइटफील्ड के समाधी-लेख(epitaph) दूसरों के कठोर शब्दों के जवाब पर प्रकाश डालते हैं : “मैं अपने चरित्र को साफ़ करने के लिए न्याय के दिन तक प्रतीक्षा करने में संतुष्ट हूँ; और मेरी मृत्यु के बाद, मैं इसके अलावा और कोई समाधी-लेख की इच्छा नहीं करता हूँ, जॉर्ज व्हाइटफ़ील्ड यहाँ दफन है─वह किस तरह का आदमी था, वह महान दिन बताएगा l’ ”
पुराने नियम में, जब दाऊद को दूसरों की कठोर आलोचना का सामना करना पड़ा, तो उसने भी खुद को परमेश्वर को सौंप दिया l जब शाऊल ने दाऊद पर बगावत का झूठा आरोप लगाया तो उसे मजबूरन समीप आनेवाली शाऊल की सेना से गुफ़ा में छिपने के लिए मजबूर होना पड़ा, तो दाऊद ने वर्णन किया कि मेरा प्राण सिंहों के बीच में है . . . ऐसे मनुष्यों के बीच में जिनके दांत बर्छी और तीर हैं” (भजन 57:4) l लेकिन उस कठिन जगह पर भी, उसने परमेश्वर की ओर रुख किया और उसमें आराम पाया : “क्योंकि तेरी करुणा स्वर्ग तक बड़ी है, और तेरी सच्चाई आकाशमंडल तक पहुँचती है” (पद.10) l
जब दूसरे हमें गलत समझते हैं या अस्वीकार करते हैं, तो परमेश्वर हमारा “शरण” है (पद.1) l उसके अक्षय और करुणा से पूर्ण प्रेम के लिए सदा उसकी प्रशंसा हो l
जब आप हतोत्साहित होते हैं तो ईश्वर की दया में रहने से आपको कैसे मदद मिलती है? आप दूसरे के प्रति उसके प्यार को कैसे प्रदर्शित कर सकते हैं?
हे अब्बा पिता, मैं आपकी प्रशंसा करता हूँ कि मुझे आपके पुत्र के कारण हमेशा के लिए स्वीकार किया जा सकता है l मैं आज आपके सम्पूर्ण प्रेम में शरण लेता हूँ l