एक व्यक्ति किराने की दुकान में गया, उसने काउंटर पर 500 रुपये रखे और रेजगारी देने को कहा l जब दुकानदार ने नकद दराज खोली, तो आदमी ने एक बंदूक खींची और रजिस्टर में दर्ज पूरी नकदी मांगी, जो दुकानदार ने तुरंत दे दी l व्यक्ति ने क्लर्क से कैश लिया और काउंटर पर रखे पांच सौ रुपये के नोट को छोड़कर फरार हो गया l दराज से उसे कुल कितनी नकदी मिली? तीन सौ रुपये l
हम सभी मूर्खतापूर्ण कार्य करते हैं─भले ही, इस चोर के विपरीत, हम सही काम करने की कोशिश करते हैं l कुंजी यह है कि हम अपने मूर्ख व्यवहार से कैसे सीखते हैं l सुधार के बिना, हमारे खराब चुनाव आदत बन सकते हैं, जो हमारे चरित्र को नकारात्मक रूप से आकार देंगे l हम “मूर्ख [बन जाएंगे . . . जिसकी] समझ काम नहीं देती” (सभोपदेशक 10:3) l
कभी-कभी अपनी मूर्खता को स्वीकार करना कठिन होता है क्योंकि इसके लिए अतिरिक्त काम की आवश्यकता होती है l शायद हमें एक विशेष चरित्र दोष पर विचार करना हो और यह पीड़ादायक है l या शायद हमें यह स्वीकार करना हो कि एक निर्णय जल्दबाजी में किया गया था और अगली बार हमें अधिक ध्यान रखना चाहिए l कारण जो भी हो, अपने मूर्खतापूर्ण तरीकों को अनदेखा करने की कीमत बड़ी होती है l
शुक्र है, परमेश्वर हमारी मूर्खता का उपयोग अनुशासन और हमें आकार देने के लिए कर सकता है l अनुशासन “आनंद [का] नहीं,” लेकिन इसके अभ्यास से लंबे समय में अच्छे फल मिलते हैं (इब्रानियों 12:11) l आइए अपने मूर्खतापूर्ण व्यवहार के लिए हमारे पिता के अनुशासन को स्वीकार करें और उससे हमें और अधिक वैसे पुत्र और पुत्रियाँ बनाने के लिए कहें जैसा वह चाहता है कि हम बनें l
आपने हाल ही में कौन सा मूर्खतापूर्ण चुनाव किया है? आपको क्या लगता है कि परमेश्वर क्या चाहता है कि आप इससे सीखें?
हे पिता, मुझे प्रशिक्षित करने के लिए मेरी मूर्खता का उपयोग करने के लिए धन्यवाद l मैं आपके अनुशासन को विनम्रता से स्वीकार करूँ जब आप मुझ में काम करना जारी रखते हैं l