सातवीं शताब्दी में, जिसे अब यूनाइटेड किंगडम कहा जाता है, अक्सर कई राज्य युद्ध में संलग्न होते थे l जब एक राजा, नॉर्थम्ब्रिया का ऑस्वाल्ड, यीशु में विश्वास करने वाला बन गया, तो उसने अपने क्षेत्र में सुसमाचार लाने के लिए एक मिशनरी को बुलाया l कॉर्मन नाम का एक आदमी भेजा गया, लेकिन बात नहीं बनी l अंग्रेजों को अपने उपदेश में “जिद्दी,” “बर्बर,” और अरुचिकर पाकर वह निराश होकर घर लौट आया l

“मेरी यह राय है,” एडन नाम के एक भिक्षु ने कॉर्मन से कहा, “ जितना आपको अपने अनजान श्रोताओं के लिए गंभीर होना था आप उससे अधिक गंभीर थे l” नॉर्थम्ब्रिया के लोगों को “अधिक आसान सिद्धांत का दूध” देने के बजाय, कॉर्मैन ने उन्हें शिक्षण दिया जिन्हें वे अभी समझ नहीं सकते थे l एडन नॉर्थम्ब्रिया गया, लोगों के समझ के अनुसार अपने उपदेश को अनुकूलित किया, और हजारों यीशु में विश्वास करने वाले बन गए l

एडन को मिशन के लिए यह संवेदनशील दृष्टिकोण पवित्र शास्त्र से मिला l पौलुस ने कुरिन्थियों से कहा, “मैंने तुम्हें दूध पिलाया, अन्न न खिलाया; क्योंकि तुम उसको नहीं खा सकते थे” (1 कुरिन्थियों 3:2) l लोगों से सही जीवनयापन की उम्मीद करने से पूर्व, इब्रानियों का कहना है, यीशु के बारे में बुनियादी शिक्षा, पश्चाताप और बपतिस्मा को समझ लेना चाहिए (इब्रानियों 5:13-6:2) l जबकि उसके बाद परिपक्वता का पालन जरूरी है (5:14), क्रम को न भूलें l ठोस भोजन से पहले दूध आता है l लोग उस शिक्षा को नहीं मान सकते हैं जिन्हें वे नहीं समझते हैं l

नॉर्थम्ब्रिया के लोगों का विश्वास आखिरकार देश के बाकी हिस्सों और उससे बाहर तक फैल गया l एडन की तरह, दूसरों के साथ सुसमाचार को साझा करते समय, हम उन लोगों से वहां मिलते हैं जहां वे हैं l