इतिहासकारों का कहना है कि परमाणु युग 16 जुलाई, 1945 को शुरू हुआ था, जब न्यू मैक्सिको के दूरदराज के रेगिस्तान में पहला परमाणु आयुध विस्फोटित किया गया था l लेकिन यूनानी दार्शनिक डेमोक्रिटस (सी. 460–370 ई.पू.) किसी भी चीज़ के आविष्कार से बहुत पहले परमाणु के अस्तित्व और शक्ति की खोज कर रहा था जो कायनात/सृष्टि के इन छोटे निर्माण खण्डों को भी देख सकता था l डेमोक्रिटस जितना देख सकता था उससे अधिक समझता था और उसका परिणाम परमाणु सिद्धांत था l
पवित्रशास्त्र हमें बताता है कि विश्वास का सार जो नहीं देखा जा सकता उसे मजबूती से पकड़ना है l इब्रानियों 11:1 पुष्टि करता है, “अब विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है l” यह अभिलाषी या सकारात्मक सोच का परिणाम नहीं है l यह उस परमेश्वर में विश्वास है जिसे हम देख नहीं सकते हैं लेकिन जिसका अस्तित्व कायनात/सृष्टि में सबसे सच्ची वास्तविकता है l उसकी वास्तविकता उसके रचनात्मक कार्यों में प्रदर्शित किया गया है (भजन 19:1) और उसका अदृश्य चरित्र और तरीके उसके पुत्र, यीशु में दिखाई देता है, जो हमें पिता का प्यार दिखाने के लिए आया था (यूहन्ना 1:18) l
यह वह परमेश्वर है जिसमें हम “जीवित रहते, और चलते-फिरते, और स्थिर रहते हैं,” जैसे प्रेरित पौलुस कहता है (प्रेरितों 17:28) l उसी तरह, “हम रूप को देखकर नहीं, पर विश्वास से चलते हैं (2 कुरिन्थियों 5: 7) l फिर भी हम अकेले नहीं चलते है l अनदेखा परमेश्वर हर कदम पर हमारे साथ चलता है l
एक ऐसी दुनिया में जहाँ देखना ही विश्वास करना है, आप किन तरीकों से परमेश्वर पर विश्वास करके जीने के लिए संघर्ष करते हैं? किस बात ने आपके विश्वास को मज़बूत किया है, और आपको किन क्षेत्रों में पूरी तरह से उसमें भरोसा करने की ज़रूरत है?
हे पिता, कभी-कभी जो मैं नहीं देख सकता पर विश्वास करना संघर्ष होता है l फिर भी, आपने अपने विश्वासयोग्य प्रेम की प्रतिज्ञा की है और कि आप मुझे कभी नहीं छोड़ेंगे या मुझे त्यागेंगे l उस प्रतिज्ञा में विश्राम करने में मेरी सहायता करें l