Month: अप्रैल 2021

पहले दूध

सातवीं शताब्दी में, जिसे अब यूनाइटेड किंगडम कहा जाता है, अक्सर कई राज्य युद्ध में संलग्न होते थे l जब एक राजा, नॉर्थम्ब्रिया का ऑस्वाल्ड, यीशु में विश्वास करने वाला बन गया, तो उसने अपने क्षेत्र में सुसमाचार लाने के लिए एक मिशनरी को बुलाया l कॉर्मन नाम का एक आदमी भेजा गया, लेकिन बात नहीं बनी l अंग्रेजों को अपने उपदेश में “जिद्दी,” “बर्बर,” और अरुचिकर पाकर वह निराश होकर घर लौट आया l

“मेरी यह राय है,” एडन नाम के एक भिक्षु ने कॉर्मन से कहा, “ जितना आपको अपने अनजान श्रोताओं के लिए गंभीर होना था आप उससे अधिक गंभीर थे l” नॉर्थम्ब्रिया के लोगों को “अधिक आसान सिद्धांत का दूध” देने के बजाय, कॉर्मैन ने उन्हें शिक्षण दिया जिन्हें वे अभी समझ नहीं सकते थे l एडन नॉर्थम्ब्रिया गया, लोगों के समझ के अनुसार अपने उपदेश को अनुकूलित किया, और हजारों यीशु में विश्वास करने वाले बन गए l

एडन को मिशन के लिए यह संवेदनशील दृष्टिकोण पवित्र शास्त्र से मिला l पौलुस ने कुरिन्थियों से कहा, “मैंने तुम्हें दूध पिलाया, अन्न न खिलाया; क्योंकि तुम उसको नहीं खा सकते थे” (1 कुरिन्थियों 3:2) l लोगों से सही जीवनयापन की उम्मीद करने से पूर्व, इब्रानियों का कहना है, यीशु के बारे में बुनियादी शिक्षा, पश्चाताप और बपतिस्मा को समझ लेना चाहिए (इब्रानियों 5:13-6:2) l जबकि उसके बाद परिपक्वता का पालन जरूरी है (5:14), क्रम को न भूलें l ठोस भोजन से पहले दूध आता है l लोग उस शिक्षा को नहीं मान सकते हैं जिन्हें वे नहीं समझते हैं l

नॉर्थम्ब्रिया के लोगों का विश्वास आखिरकार देश के बाकी हिस्सों और उससे बाहर तक फैल गया l एडन की तरह, दूसरों के साथ सुसमाचार को साझा करते समय, हम उन लोगों से वहां मिलते हैं जहां वे हैं l

मिलकर काम करना

जो(Joe) ने दिन में बारह घंटे से ज्यादा काम किया, अक्सर बिना अवकाश के l एक धर्मार्थ व्यवसाय के आरम्भ ने इतने समय और ऊर्जा की मांग की कि जब वह घर पहुँचा तो उसके पास उसकी पत्नी और बच्चों के लिए बहुत कम समय बचा था l जीर्ण तनाव की सजा ने जब जो को अस्पताल में पहुंचाया, तो एक दोस्त ने उसकी मदद करने के लिए एक टीम का आयोजन करने की पेशकश की l हालांकि वह नियंत्रण छोड़ने में डर रहा था, जो जानता था कि वह अपनी वर्तमान गति को बनाए नहीं रख सकता l वह अपने दोस्त पर─और ईश्वर पर─भरोसा करने के लिए तैयार हो गया, जब उसने उन लोगों के समूह को जिम्मेदारियाँ सौंपीं जिन्हें उन्होंने एक साथ मिलकर चुना था l एक साल बाद, जो ने स्वीकार किया कि दान और उसका परिवार कभी समृद्ध नहीं हो सकता है यदि उसने उस मदद को अस्वीकार किया होता जिसे परमेश्वर ने उसको भेजा था l

परमेश्वर ने एक प्यार करने वाले समुदाय के समर्थन के बिना लोगों को अभिकल्पित नहीं किया l निर्गमन 18 में, मूसा ने जंगल के रास्ते से इस्राएलियों का नेतृत्व किया l उसने अपने बल पर एक शिक्षक, एक परामर्शदाता, और एक न्यायी के रूप में परमेश्वर के लोगों की सेवा करने की कोशिश की l जब उसके ससुर ने उससे मुलाकात की, तो उन्होंने मूसा को सलाह दी : “इससे तू क्या, वरन् ये लोग भी जो तेरे संग हैं निश्चय थक जाएँगे, क्योंकि यह काम तेरे लिए बहुत भारी है,” यित्रो ने कहा (निर्गमन 18:18) l उसने मूसा को वफादार लोगों के साथ काम का बोझ साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया l मूसा ने मदद स्वीकार की और पूरे समुदाय को फायदा हुआ l

जब हम भरोसा करते हैं कि परमेश्वर अपने सभी लोगों के साथ और उनके द्वारा काम करता है, जब हम एक साथ काम करते हैं, तो हम वास्तविक आराम पा सकते हैं l

लिपट जाना

“डैडी, क्या आप मेरे लिए पढेंगे?” मेरी बेटी ने पूछा l किसी बच्चे के लिए माता-पिता से इस प्रकार का प्रश्न करना असामान्य नहीं है l लेकिन मेरी बेटी अब ग्यारह वर्ष की है l इन दिनों, इस तरह के अनुरोध उस समय से कम होते हैं जब वह छोटी थी l “हाँ,” मैंने खुशी से कहा, और वह सोफे पर मेरे बगल में सिमट कर बैठ गयी l

जब मैं उसके लिए पढ़ रहा था, वह मानो मुझ से लिपट गयी l माता-पिता के रूप में वह उन शानदार क्षणों में से एक था, जब हम शायद हमारे लिए हमारे पिता के सिद्ध प्यार को महसूस करते है और हमारे लिए उसकी गहरी इच्छा कि हम उसकी उपस्थिति और हमारे लिए उसके प्रेम में “समा जाएँ l”

मुझे उस पल एहसास हुआ कि मैं बहुत हद तक अपने ग्यारह साल के बच्चे की तरह हूँ l अधिकांश समय, मैं स्वतंत्र होने पर ध्यान केंद्रित करता हूँ l हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम के स्पर्श से दूर होना कितना सरल है, एक कोमल और सुरक्षात्मक प्रेम जिसका वर्णन भजन 116 “अनुग्रहकारी और धर्मी . . . दया करनेवाला” के रूप में करता है (पद.5) l यह एक प्यार है जहां, मेरी बेटी की तरह, मैं परमेश्वर की गोद में सिमट सकता हूँ, घर पर मेरे लिए उसकी खुशी में l

भजन 116:7 बताता है कि हमें नियमित रूप से अपने आप को परमेश्वर के अच्छे प्रेम की याद दिलाना पड़ सकता है, और फिर प्रतीक्षा कर रही उसकी बाहों में सिमट जाना : “हे मेरे प्राण, तू अपने विश्रामस्थान में लौट आ; क्योंकि यहोवा ने तेरा उपकार किया है l” और वास्तव  में, उसने किया है l

मुर्खता से सीखना

एक व्यक्ति किराने की दुकान में  गया, उसने काउंटर पर 500 रुपये रखे और रेजगारी देने को कहा l  जब दुकानदार ने नकद दराज खोली, तो आदमी ने एक बंदूक खींची और रजिस्टर में दर्ज पूरी नकदी मांगी, जो दुकानदार ने तुरंत दे दी l व्यक्ति ने क्लर्क से कैश लिया और काउंटर पर रखे पांच सौ रुपये के नोट को छोड़कर फरार हो गया  l दराज से उसे कुल कितनी नकदी मिली? तीन सौ रुपये  l

हम सभी मूर्खतापूर्ण कार्य करते हैं─भले ही, इस चोर के विपरीत, हम सही काम करने की कोशिश करते हैं l कुंजी यह है कि हम अपने मूर्ख व्यवहार से कैसे सीखते हैं  l सुधार के बिना, हमारे खराब चुनाव आदत बन सकते हैं, जो हमारे चरित्र को नकारात्मक रूप से आकार देंगे  l हम “मूर्ख [बन जाएंगे . . . जिसकी] समझ काम नहीं देती” (सभोपदेशक 10:3) l

कभी-कभी अपनी मूर्खता को स्वीकार करना कठिन होता है क्योंकि इसके लिए अतिरिक्त काम की आवश्यकता होती है  l शायद हमें एक विशेष चरित्र दोष पर विचार करना हो और यह पीड़ादायक है l   या शायद हमें यह स्वीकार करना हो कि एक निर्णय जल्दबाजी में किया गया था और अगली बार हमें अधिक ध्यान रखना चाहिए  l कारण जो भी हो,  अपने मूर्खतापूर्ण तरीकों को अनदेखा करने की कीमत बड़ी होती है l

शुक्र है, परमेश्वर हमारी मूर्खता का उपयोग अनुशासन और हमें आकार देने के लिए कर सकता है l  अनुशासन “आनंद [का] नहीं,” लेकिन इसके अभ्यास से लंबे समय में अच्छे फल मिलते हैं (इब्रानियों 12:11)  l आइए अपने मूर्खतापूर्ण व्यवहार के लिए हमारे पिता के अनुशासन को  स्वीकार करें और उससे हमें और अधिक वैसे पुत्र और पुत्रियाँ बनाने के लिए कहें जैसा वह चाहता है कि हम बनें l