मैंने एक बार निःसंतान दंपतियों के लिए सामयिक सम्मेलन में बोला । अपने बांझपन से दुखी, कई उपस्थित लोग अपने भविष्य को लेकर निराश थे । खुद संतानहीनता के मार्ग पर चलते हुए भी, मैंने उन्हें प्रोत्साहित करने की कोशिश की l “माता-पिता बने बिना आपकी एक सार्थक पहचान हो सकती है,” मैंने कहा l “मेरा मानना है कि आप भयानक और अद्भुत रीति से रचे गए हैं, और आपके लिए खोजने के लिए एक नया उद्देश्य है l”  

बाद में एक महिला रोती हुयी मुझसे मिली l उसने कहा, धन्यवाद l मैंने निःसंतान होने के कारण व्यर्थ महसूस किया है और यह सुनने की ज़रूरत है कि मैं भयभीत और आश्चर्यजनक रूप से बनी हूँ l” मैंने उस महिला से पूछा कि क्या वह यीशु में विश्वास रखती है l “मैं वर्षों पहले ईश्वर से दूर चली गयी,” उसने कहा l “लेकिन फिर से मुझे उसके साथ रिश्ता चाहिए l”

“इस तरह के समय मुझे याद दिलाते हैं कि सुसमाचार कितना अथाह है । कुछ पहचान, जैसे “माता” और “पिता,” कुछ के लिए प्राप्त करना कठिन होता है l अन्य, जैसे जो आजीविका पर आधारित होते हैं, बेरोजगारी के द्वारा गवां सकते हैं l परन्तु यीशु के द्वारा हम परमेश्वर के “प्रिय [बालक] बन जाते हैं──एक ऐसी पहचान जिसे कोई चुरा नहीं सकता (इफिसियों 5:1) । और तब हम “प्रेम में” चल सकते है──एक जीवन उद्देश्य जो किसी भी भूमिका या रोजगार की स्थिति से बढ़कर है (पद.2) l 

सब मनुष्य “भयानक और अद्भुत रीति से रचे गए हैं” (भजन 139:14), और जो यीशु के पीछे हो लेते हैं वह परमेश्वर की सन्तान बन जाते है (यूहन्ना 1:12-13) l एक बार निराशा में, वह महिला आशा में छोड़ दी गयी थी──इस संसार की तुलना में अब उससे बड़ी पहचान और उदेश्य पाने के निकट है l