उसने दरवाज़ा जोर से बंद किया l उसने पुनः दरवाज़ा जोर से किया l मैं गराज में गया, एक हथौड़ा और एक पेंचकस पकड़ा, और अपनी बेटी के कमरे में गया l धीरे से मैं फुसफुसाया, “प्रिय l तुम्हें अपने क्रोध को नियंत्रित करना सीखना होगा l” उसके बाद मैंने दरवाज़े को उसके कब्जों से अलग करके गराज में रख दिया l मेरी आशा थी कि अस्थायी रूप से दरवाज़े को हटाना उसे आत्म-नियंत्रण के महत्त्व को याद करने में मदद करेगा l 

नीतिवचन 3:11-12 में, बुद्धिमान शिक्षक अपने पाठकों को परमेश्वर का अनुशासन स्वीकार करने के लिए आमंत्रित करता है l शब्द अनुशासन का अनुवाद “सुधार” हो सकता है l एक नेक और प्रेमी पिता के जैसे, परमेश्वर आत्म-विनाशक व्यवहार को सुधारने के लिए अपनी आत्मा एवं पवित्र वचन के द्वारा बात करता है l परमेश्वर का अनुशासन सम्बन्धात्मक है──जो हमारे लिए सर्वोत्तम है उसके लिए उसके प्रेम और उसकी इच्छा में जड़वत l कभी-कभी वह परिणाम के समान दिखाई देता है l कभी-कभी परमेश्वर किसी का उपयोग हमारे कमज़ोर विषय को प्रगट करने के लिए करता है l अक्सर, यह असुखद होता है, लेकिन परमेश्वर का अनुशासन एक उपहार है l 

लेकिन हम उसे उस नज़रिए से नहीं देखते हैं l बुद्धिमान व्यक्ति ने चिताया, “यहोवा की शिक्षा से मुंह न मोड़ना” (पद.11) l कभी-कभी हम परमेश्वर के अनुशासन से डरते हैं l दूसरे समयों में हम अपने जीवनों में बुरी चीजों को परमेश्वर का अनुशासन मान लेते हैं l यह प्रेमी पिता के हृदय से बहुत दूर है जो इसलिए अनुशासित करता है क्योंकि वह हममें आनंद लेता है और हमें सुधारता है क्योंकि वह हमें प्यार करता है l 

परमेश्वर के अनुशासन से डरने के बजाय, हम उसे स्वीकार करना सीखें l जब हम अपने हृदयों में परमेश्वर के सुधार की आवाज़ सुनते हैं या पवित्र वचन पढ़ते समय दोषभावना का अनुभव करते हैं, हम परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं कि वह सर्वोत्तम की ओर अगुवाई करने में हममें पर्याप्त रूप से आनंदित होता है l