सब जो आपकी ज़रूरत है
डाइनिंग रूम टेबल पर बैठी हुई , मैं अपने चारों ओर हर्षित कोलाहल को निहार रही थी l चाची, चाचा, चचेरे भाई-बहन, और भतीजे, और भतीजियाँ भोजन का आनंद ले रहे थे और हमारे पारिवारिक पुनर्मिलन में एक साथ थे l मैं भी सभी का आनंद ले रही थी l लेकिन एक विचार ने मेरे हृदय को छेद दिया : तुम यहाँ एकमात्र ऐसी महिला हो, जिसके पास कोई बच्चा नहीं है, कोई परिवार नहीं जो तुम्हें अपना कह सके l
मेरी जैसी अकेली स्त्रियों के समान अनुभव हैं l मेरी संस्कृति में, एक एशियाई संस्कृति जहाँ विवाह और बच्चों को बहुत महत्व दिया जाता है, अपना एक परिवार न होना अपूर्णता का भाव ला सकता है l यह ऐसा महसूस हो सकता है कि आपको कुछ कमी है जो परिभाषित करता है आप कौन हैं और आपको पूर्ण करता है l
यही कारण है कि परमेश्वर का मेरा “भाग” होने का सच मेरे लिए बहुत आरामदायक है (भजन 73:26) l जब इस्राएल के गोत्रों को उनकी भूमि का आवंटन दिया गया था, तब लेवी के याजकीय गोत्र को कुछ नहीं सौंपा गया l इसके बदले में, परमेश्वर ने वादा किया कि वह उनका भाग और मीरास होगा (व्यवस्थाविवरण 10:9) l वे उसमें पूर्ण संतुष्टता प्राप्त कर सकते थे और उनकी हर आवश्यकता पूरी होने के लिए उस पर भरोसा कर सकते थे l
हममें से कुछ के लिए, कमी के भाव का परिवार से लेना-देना नहीं है l शायद हम एक बेहतर नौकरी या उच्च शैक्षिक उपलब्धि के लिए लालायित है l हमारी स्थितियों के बावजूद, हम परमेश्वर को अपने भाग के रूप में गले लगा सकते हैं l वह हमें पूर्ण करता है l उसमें, हमें कुछ घटी नहीं है l
आनंदपूर्ण सीखना
भारत के मैसूर शहर में, ट्रेन के दो डिब्बों को नया स्वरूप देकर, और दोनों ओर से जोड़कर एक स्कूल बनाया गया है l स्थानीय शिक्षकों ने दक्षिण पश्चिम रेलवे कम्पनी के साथ एक टीम बनाकर खारिज डिब्बों को ख़रीदा और उन्हें नया स्वरुप दिया l ये इकाइयाँ वास्तव में धातु के बड़े बक्से थे, और कर्मियों द्वारा सीढ़ियाँ, फंखें, बत्तियां, और डेस्क लगाए जाने तक अनुपयोगी थे l कर्मियों ने दीवालों को भी पैंट किया और अन्दर और बाहर रंगीन भित्ति-चित्र बनाए l वर्तमान में, आश्चर्यजनक रूपांतरण के कारण, यहाँ पर साठ विद्यार्थी कक्षाओं में उपस्थित होते हैं l
कुछ और अधिक आश्चर्यजनक होता है जब हम प्रेरित पौलुस का निर्देश “तुम्हारे मन के नए हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए” का अनुसरण करते हैं ((रोमियों 12:2) l जब हम पवित्र आत्मा को हमें संसार और उसके तरीकों से अलग करने की अनुमति देते हैं, तो हमारे विचार और दृष्टिकोण बदलने लगते हैं l हम अधिक प्रेममय, अधिक आशान्वित और आंतरिक शांति से परिपूर्ण हो जाते हैं (8:6) l
कुछ और भी होता है l यद्यपि यह रूपांतरण प्रक्रिया अविरत है, और अक्सर रेल के सफ़र से अधिक ठहराव एवं आरम्भ होते हैं, यह प्रक्रिया हमें समझने में मदद करती है कि परमेश्वर हमारे जीवनों के लिए क्या चाहता है l यह हमें एक ऐसे स्थान पर ले जाता है जहाँ हम “परमेश्वर की . . . इच्छा अनुभव” करते हैं (12:2) l उसकी इच्छा में बारीकियां हो सकती हैं या नहीं हो सकती हैं, लेकिन इसमें हमेशा खुद को उसके चरित्र और संसार में उसके काम के साथ संरेखित करना शामिल है l
भारत में रूपांतरित स्कूल का नाम, नली कली(Nali Kali) का मतलब हिंदी में “आनंदपूर्ण सीखना” है l किस तरह परमेश्वर की रूपांतरित करनेवाली सामर्थ्य आपको उसकी इच्छा में आनंदपूर्ण सीखने की ओर अगुवाई करती है?
ईकाबोद का भागना
द लेजेंड ऑफ़ स्लीपी होलो(The Legend of Sleepy Hollow)(एक अंग्रेजी उपन्यास) में, लेखक एक स्कूल शिक्षक ,ईकाबोद क्रेन, के बारे में बताता है जो कैटरीना नाम की एक खूबसूरत युवती से विवाह करना चाहता है l कहानी की कुंजी एक बिना सिर वाला घोड़सवार है जो भुत बनकर उपनिवेशी ग्रामीण क्षेत्र को परेशान करता है l एक रात, ईकाबोद का सामना घोड़े पर सवार एक प्रेतरूपी छाया से होता है और वह डर के मारे उस क्षेत्र से भाग जाता है l पाठक के लिए यह स्पष्ट है कि यह “घोड़सवार” वास्तव में कैटरीना के लिए प्रतिद्वंदी विवाह-प्रस्तावक है, जो बाद में उससे विवाह करता है l
ईकाबोद एक नाम है जो बाइबल में पहले आया है, और जिसकी पिछली कहानी भी धुंधली है l पलिश्तियों के साथ युद्ध में, इस्राएल वाचा का पवित्र संदूक युद्ध में लेकर गया l गलत चाल l उन्होंने इस्राएल की सेना को पराजित कर संदूक छीन लिया l महायाजक एली के पुत्र, होप्नी और पीनहास, मारे गए (1 शमूएल 4:17) l एली भी मरनेवाला था (पद.18) l जब पीनहास की गर्ववती पत्नी ने यह समाचार सुना, “उसको जच्चा का दर्द उठा, और वह दुहर गई ” (पद.19) l अपने अंतिम शब्दों के द्वारा उसने अपने बेटे का नाम ईकाबोद(शब्शः, “कोई महिमा नहीं) रखा l वह हाँफती हुए बोली, “इस्राएल में से महिमा उठ गई है” (पद.22) l
धन्यवाद हो, परमेश्वर के पास इससे भी बड़ी कहानी थी l उसकी महिमा यीशु में प्रगट होने वाली थी, जिसने अपने शिष्यों के विषय कहा, “वह महिमा जो तू [पिता] ने मुझे दी मैं ने उन्हें दी है (यूहन्ना 17:22) l
किसी को नहीं मालूम की आज संदूक कहाँ है, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता l ईकाबोद भाग गया है l यीशु के द्वारा, परमेश्वर ने अपनी खुद की महिमा हमें दी है l
असीमित
मैं यहाँ हूँ, शॉपिंग मॉल फ़ूड कोर्ट में बैठी हूँ, मेरा शरीर तनावग्रस्त है और काम की निर्धारित तिथियों के कारण मेरे पेट में असहज कसाव है l जब मैं अपना भोजन खोलती और एक टुकड़ा खाती हूँ, लोग मेरे चारों ओर भागते हुए नज़र आते हैं, जो अपने ही काम पर झल्ला रहे होते हैं l हम कितने सीमित है, मैं अपने बारे में सोचती हूँ, समय, ऊर्जा, और क्षमता में सीमित l
मैं एक नई कार्य सूची लिखने और आवश्यक कार्यों को प्राथमिकता देने पर विचार करती हूँ, लेकिन मैं जैसे ही पेन निकालती हूँ एक और विचार मेरे मन में आ जाता है : एक व्यक्तित्व जो अनंत और असीमित है, जो सहजता से सब काम पूरा करता है जिसकी वह इच्छा करता है l
यह परमेश्वर, यशायाह कहता है, महासागर को चुल्लू से माप सकता है और पृथ्वी के मिटटी को नपुए में भर लेता है (यशायाह 40:12) l वह तारों को गिन गिनकर निकालता, और उन सब को नाम ले लेकर बुलाता है (पद.26), बड़े बड़े हाकिमों को तुच्छ कर देता है, और पृथ्वी के अधिकारियों को शून्य के समान कर देता है (पद.23), वह जातियाँ तो डोल में की एक बूंद या पलड़ों पर की धुल के तुल्य ठहरती [हैं]; [और] वह द्वीपों को धुल के किनकों सरीखे उठाता [है] (पद.15) l “तुम मुझे किसके समान बताओगे?” वह कहता है (पद.25) l “यशायाह उत्तर देता है, “यहोवा जो सनातन परमेश्वर और पृथ्वी भर का सृजनहार है, वह न थकता, न श्रमित होता है” (पद.28) l
तनाव और घोर परिश्रम हमारे लिए अच्छे नहीं होते, लेकिन आज वे हमें शक्तिशाली सबक देते हैं l असीमित परमेश्वर मेरी तरह नहीं है l वह जो इच्छा करता है उसे पूरा करता है l मैं अपना भोजन ख़त्म करती हूँ और फिर ठहर जाती हूँ l और शांत होकर आराधना करती हूँ l