दोनों महिलाओं ने एक दूसरे के आरपार गलियारों के सीट हासिल कर लिए l उड़ान दो घंटे की थी, इसलिए मैं उनकी कुछ परस्पर क्रियाओं को देखने से खुद को रोक न सका l यह स्पष्ट था कि वह एक दूसरे से परिचित थीं, शायद सम्बंधित भी होंगी l दोनों में से कम उम्र की महिला (शायद साठ के दशक में) निरंतर अपने बैग से ताज़े सेब के फांक, उसके बाद घर के बनी सैंडविच, फिर सफाई के लिए टिश्यू पेपर, और अंत में अखबार की ताजी प्रति उम्र में बड़ी महिला (मेरे अनुमान में जो नब्बे की दशक में थी) को देती रही l प्रत्येक वस्तु बड़ी कोमलता, बड़े आदर से दी गयी l जब हम विमान से बाहर निकल रहे थे, मैंने उम्र में कम महिला से कहा, ‘मैंने आपके देखभाल के तरीके पर ध्यान दिया l वह बहुत सुन्दर था l” उसने उत्तर दिया, “वह मेरी सबसे प्रिय मित्र है l वह मेरी माँ है l”

यह कितनी महान बात होती यदि हम सब कुछ उस प्रकार बोल पाते? कुछ माता-पिता सबसे अच्छे मित्र की तरह होते हैं l कुछ माता-पिता उस तरह के बिलकुल नहीं होते l सच्चाई यह है कि उस प्रकार के सम्बन्ध अपने सर्वोत्तम में हमेशा जटिल होते हैं l जबकि तीमुथियुस को लिखी गई पौलुस की पत्री इस जटिलता की उपेक्षा नहीं करती है, इसके बावजूद यह हमें अपने माता-पिता और दादा-दादी──हमारे “अपने,” अपने “घराने” की देखभाल करने के द्वारा “पहले अपने ही घराने के साथ भक्ति का बर्ताव” करने का आह्वान करता है (1 तीमुथियुस 5:4,8) l 

हम सभी भी अक्सर इस तरह की देखभाल का अभ्यास करते हैं, यदि परिवार के सदस्य हमारे लिए अच्छे थे या हैं l दूसरे शब्दों में, अगर वे इसके लायक हैं l लेकिन पौलुस उन्हें चुकाने के लिए एक और सुन्दर कारण प्रस्तुत करता है l उनकी देखभाल करें क्योंकि “यह परमेश्वर को भाता है” (पद.4) l