प्राचीन रोम के पास “सुसमाचार”──अच्छी खबर──का अपना संस्करण था l कवि वर्जिल के अनुसार, देवताओं के राजा ग्युस ने रोमियों के लिए एक राज्य की घोषणा की थी जिसकी सीमाएं अंतहीन थीं l देवताओं ने अगुस्तुस को दिव्य पुत्र और विश्व के उद्धारकर्ता के रूप चुनकर शांति और समृद्धि के सुनहरे युग का आरम्भ किया था l
हालाँकि, यह सभी के विचार से अच्छी खबर नहीं थी l कई लोगों के लिए यह सम्राट की सेना और जल्लादों की तानाशाही द्वारा लागू एक अप्रिय वास्तविकता थी l साम्राज्य की महिमा उन दास लोगों की ताकत पर बनायी गई थी, जिन्होंने उन पर शासन करने वाले स्वामी की ख़ुशी में कानूनी व्यक्तित्व या संपत्ति के बिना सेवा की थी l
यह वह संसार था जिसमें पौलुस ने खुद को मसीह के सेवक के रूप में पेश किया था (रोमियों 1:1) l एक समय कैसे पौलुस──यीशु──इस नाम से नफरत करता था l और कैसे यीशु खुद को यहूदियों का राजा और संसार का उद्धारकर्ता होना स्वीकार करने के कारण दुःख उठाया था l
यही वह सुसमाचार था जो पौलुस पत्र के अपने बाकी हिस्से में रोमियों को समझानेवाला था l यह सुसमाचार “हर एक विश्वास करनेवाले के लिए . . . उद्धार के निमित्त परमेश्वर की सामर्थ्य [था]” (पद.16) l ओह, कैसर के आधीन पीड़ित लोगों को इसकी कितनी आवश्यकता थी! यहाँ एक क्रूस पर चढ़ाए गए और पुनारुथित उद्धारकर्ता का समाचार था──छुटकारा देनेवाला जिसने अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके दिखाया कि वह उनसे कितना प्यार करता था l
जब आप रोम के लोगों के लिए पौलुस के शुरूआती शब्द पढ़ते हैं, तो कौन से वाक्यांश आपके सामने सुसमाचार का वर्णन करते हैं? (1:1-7) l कोई (पौलुस) क्यों जो कभी यीशु से इतनी नफरत करता था, अब चाहता है कि हर एक उसमें विश्वास करे? (प्रेरितों 26) l
अच्छी खबर उन लोगों द्वारा सबसे अच्छी तरह से जानी जाती है जो जानते हैं कि इसकी कितनी ज़रूरत है l