रितेश शर्मिंदा हुआ जब वह दोपहर के भोजन के लिए आया और उसे एहसास  हुआ कि वह अपना बटुआ भूल आया था l यह उसे इस बिंदु तक परेशान किया कि उसने विचार किया कि वह बिलकुल ही भोजन नहीं करेगा अथवा केवल कुछ पीने के लिए ले लेगा l अपने मित्र से कुछ निश्चयक मिलने पर, उसने अपना प्रतिरोध शांत किया l वह और उसका मित्र भोजन का आनंद लिए, और उसके मित्र ने ख़ुशी से बिल का भुगतान किया l 

शायद हम इस दुविधा या किसी अन्य स्थिति से पहचान बना सकते हैं जो आपको प्रापक बना देता है l अपना भुगतान करना स्वाभाविक है, लेकिन ऐसे अवसर आते हैं जब हमें उदारता से जो दिया जाता है उसे हम नम्रतापूर्वक स्वीकार कर लें l 

लूका 15:17-24 में किसी तरह का भुगतान हो सकता है जो छोटे बेटे के मन में था जो वह सोच रहा था कि वह अपने पिता से कहेगा l “अब इस योग्य नहीं रहा कि तेरा पुत्र कहलाऊं, मुझे अपने एक मजदूर के समान रख ले” (पद.19) l “मजदूर?” उसके पिता के पास ऐसा कुछ नहीं होता! उसके पिता की दृष्टि में, वह एक बहुत ही प्यारा बेटा था जो घर लौटा था l उसी रूप में उसका सामना उसके पिता के आलिंगन और स्नेही चुम्बन से हुआ (पद.20) l सुसमाचार का कितना शानदार तस्वीर! यह हमें याद दिलाता है कि यीशु की मृत्यु द्वारा उसने प्रेमी पिता को प्रगट किया जो खाली-हाथ लेकर आये अपने बच्चों’ का स्वागत खुली बाहों से करता है l एक गीत के लेखक ने इसे इस प्रकार वर्णन किया : “छूछे हाथ मैं आता हूँ, तेरा क्रूस मैं पकड़ा हूँ(Nothing in my hand I bring Simply to Thy cross I cling) l”