मेरा परिवार मेरे दादाजी को एक मजबूत विश्वास और प्रार्थना वाले व्यक्ति के रूप में याद करता है l लेकिन हमेशा ऐसा नहीं था l मेरी चाची ने पहली बार याद किया कि उनके पिता ने परिवार से कहा, “हम खाने से पहले परमेश्वर को धन्यवाद देना आरम्भ करेंगे l” उनकी पहली प्रार्थना सार्थक नहीं थी, लेकिन दादाजी ने अगले पचास वर्षों तक प्रार्थना का अभ्यास जारी रखा, अक्सर पूरे दिन प्रार्थना करना l जब उनकी मृत्यु हुई , मेरे पति ने मेरे दादीजी को एक “प्रार्थना करनेवाले हाथ” वाली अलभ्य कलाकृति देते हुए कहा, “दादाजी प्रार्थना करने वाले व्यक्ति थे l” उनका परमेश्वर का अनुकरण और उससे बात करने का निर्णय ने उन्हें मसीह के एक विश्वासयोग्य सेवक में बदल दिया l 

बाइबल प्रार्थना के विषय बहुत कुछ कहती है l मत्ती 6:9-13 में, यीशु ने अपने अनुयायियों को प्रार्थना का एक नमूना दिया, जिसमें उसने सिखाया कि ईश्वर जो है, उसके लिए उसके पास सच्ची प्रशंसा के साथ जाना चाहिए l जब हम अपने निवेदन परमेश्वर के पास लाते हैं, हम उससे “हमारी प्रतिदिन की रोटी” का प्रबंध करने के लिए भरोसा करते हैं (पद.11) l जब हम अपने अपराधों को मान लेते हैं, हम उससे क्षमा और परीक्षा से बचाने के लिए मदद मांगते हैं (पद.12-13) l 

लेकिन हम “प्रभु की प्रार्थना” करने तक सीमित नहीं हैं l परमेश्वर चाहता है कि हम “सभी अवसरों” पर “सब प्रकार की प्रार्थना” करें (इफिसियों 6:18) l प्रार्थना हमारे आत्मिक स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है, और वह हमें प्रतिदिन उसके साथ निरंतर संवाद में रहने का अवसर देता है (1 थिस्सलुनीकियों 5:17-18) l 

जब हम दीन हृदयों के साथ परमेश्वर के निकट जाते हैं जो उससे बात करने को लालायित रहते हैं, यह हमें उसे बेहतर जानने और प्रेम करने में मदद करे l