मैंने अपने प्रत्येक बच्चे को पत्र लिखा जब वे किशोरावस्था में प्रवेश कर रहे थे l एक पत्र में मैंने मसीह में हमारी पहचान के विषय बात की, यह याद करते हुए कि जब मैं किशोर था, मैं अपने को असुरक्षित और खुद में भरोसे की कमी महसूस करता था l मुझे सीखना था कि मैं परमेश्वर का प्रिय था─उसका बच्चा l मैंने उस पत्र में कहा, “जानना कि आप कौन हैं उस बात से आता है कि आप किसके हैं l” क्योंकि जब हम समझते हैं कि परमेश्वर ने हमें बनाया है और हम उसका अनुसरण करने के लिए समर्पित होते हैं, तो हम जिसके लिए उसने हमें रचा है के साथ शांति में हो सकते हैं l और हम यह भी जानते हैं कि हर दिन वह हम को और भी अपने समान बनने के लिए बदलाव करता है l 

परमेश्वर के बच्चों के रूप में हमारी पहचान के विषय पवित्रशास्त्र का एक बुनियादी परिच्छेद व्यवस्थाविवरण 33:12 है : “यहोवा का वह प्रिय जन, उसके पास निडर वास करेगा; और वह दिन भर उस पर छाया करेगा, और वह उसके कन्धों के बीच रहा करता है l” मूसा की मृत्यु से ठीक पहले, उसने बिन्यमीन के गोत्र पर आशीष की घोषणा की जब परमेश्वर के लोग उस देश में जो उसने उनको देने का वादा किया था में प्रवेश करने के लिए तैयारी कर रहे थे l परमेश्वर चाहता था कि वे हमेशा याद रखें कि वे उसके परमप्रिय थे और उसके बच्चों के रूप में जो उनकी पहचान थी उसमें में विश्राम करें l 

परमेश्वर के बच्चों के रूप में अपनी पहचान को जानना सभी के लिए बराबर से महत्वपूर्ण है──जो किशोर हैं, जो मध्य उम्र में हैं, और जो लम्बे समय तक जीवित रहे हैं l जब हम यह समझते हैं कि परमेश्वर हमें बनाया है और हमारी देखभाल करता  है, हम सुरक्षा, आशा और प्रेम प्राप्त कर सकते हैं l