उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में, थॉमस कार्लाइल ने दर्शनशास्त्री जॉन स्टुअर्ट मिल को समीक्षा करने के लिए हस्तलेख दी l किसी प्रकार, चाहे धोखे से या जानबूझकर, हस्तलेख आग में गिर गया l यह कार्लाइल की एकलौती प्रति थी l अविचलित, वह खोये हुए अध्यायों को फिर से लिखने लगे l महज आग उसकी कहानी को रोक नहीं सकती थी, जो उनके मस्तिष्क में अक्षुण्ण थी l बड़ी हानि के भीतर से, कार्लाइल ने अपना स्मारकीय लेखन द फ्रेंच रिवोल्यूशन(The French Revolution) उत्पादित किया l
प्राचीन यहूदा के पत्नोमुख राज्य के गिरावट के दिनों में, परमेश्वर ने यिर्मयाह नबी से कहा, “एक पुस्तक लेकर जितने वचन मैं ने तुझसे . . . कहे हैं, सब को उसमें लिख” (यिर्मयाह 36:2) l सन्देश में निकट आक्रमण से बचने के लिए अपने लोगों को पश्चाताप करने का आह्वान करते हुए परमेश्वर के कोमल हृदय को प्रकट किया गया था (पद.3) l
यिर्मयाह ने वही किया जो उससे बोला गया था l पांडुलिपि शीघ्र ही यहूदा के राजा यहोयाकिम के पास पहुँच गया, जिसने उसे क्रमबद्ध रूप से टुकड़े-टुकड़े करके आग में फेंक दिया (पद.23-25) l राजा के आग लगाने के अपराध के इस कृत्य ने मामले को और बदतर बना दिया l परमेश्वर ने यिर्मयाह से उसी सन्देश का एक और हस्तलिपि बनाने को कहा l उसने कहा, “[यहोयाकिम का] कोई दाऊद की गद्दी पर विराजमान न रहेगा; और उसका शव ऐसा फेंक दिया जाएगा कि दिन को धुप में और रात को पाले में पड़ा रहेगा” (पद.30) l
आग में फेंकने के द्वारा परमेश्वर के वचन का जलाना संभव है l संभव है, लेकिन बिलकुल व्यर्थ l शब्दों के पीछे शब्द/वचन सर्वदा तक स्थिर है l
किस कारण ने मुझे या दूसरों को जिन्हें मैं जानता हूँ परमेश्वर के वचनों को अनदेखा करने के लिए विवश किया है? जो उसने मुझे हिदायत दी है उसके प्रति समर्पण और आज्ञाकारिता से उसका अनुसरण करना मेरे लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
हे पिता, आपके वचनों को ख़ास मानने में मेरी मदद कर, यद्यपि वे सुनने में कठिन हैं l मुझे पश्चाताप का मन दें──अवज्ञा का नहीं l