“आपको देखकर बहुत ख़ुशी हुई !” “आपको, भी!” “बहुत ख़ुशी है कि आप यहाँ हैं!” शुभकामनाएँ गर्मजोशी और स्वागत के थे । एक दूसरे शहर की एक सेवाकाई के सदस्य अपने शाम के कार्यक्रम से पहले ऑनलाइन एकत्र हुए । उनके वक्ता के रूप में, मुझे बुलाते हुए, मैं चुपचाप देखता रहा, जब बाकी लोग वीडियो कॉल पर इकट्ठे होने लगे । एक अंतर्मुझी के रूप में और किसी को नहीं जानने के कारण, मैंने एक सामाजिक  रूप से बाहरी व्यक्ति की तरह महसूस किया । फिर अचानक, एक स्क्रीन खुला और वहां मेरे पास्टर थे । फिर एक और स्क्रीन खुला । लम्बे समय से एक चर्च मित्र भी कॉल में शामिल हो रहे थे । उन्हें देखकर, मुझे अब अकेला महसूस नहीं हुआ । ऐसा लगता था, परमेश्वर, समर्थन भेजा था । 

इज़ेबेल और अहाब के प्रकोप से बचकर निकलने के बाद “अकेला [नबी] रह गया है” के जैसा अनुभव करने के बावजूद एलिय्याह अकेला नहीं था (1 राजा 19:10) । मरुभूमि के बियाबान में चालीस दिन और चालीस रात तक यात्रा करने के बाद, एलिय्याह होरेब पर्वत पर एक गुफा में छिप गया । लेकिन परमेश्वर ने उसे सेवा में वापस बुलाकर उससे कहा, “लौटकर दमिश्क के जंगल को जा, और वहां पहुँचकर अराम का राजा होने के लिए हजाएल का और इस्राएल का राजा होने को निमशी के पोते येहू का, और अपने स्थान पर नबी होने के लिए आबेलमहोला के शापात के पुत्र एलिशा का अभिषेक करना” (पद.15-16) । 

परमेश्वर ने उसके बाद आश्वस्त किया, “तौभी मैं सात हज़ार इस्राएलियों को बचा रखूँगा । ये तो वे सब हैं, जिन्होंने न तो बाल के आगे घुटने टेके, और न मुँह से उसे चूमा है” (पद.18) । जैसा कि एलिय्याह ने सीखा, परमेश्वर की सेवा करते समय हम अकेले सेवा नहीं करते हैं । जब परमेश्वर सहायता पहुंचाता है, हम मिलकर सेवा करते हैं ।