ग्लानिहीन आँसू
"मुझे क्षमा करें," सीमा ने अपने बहते आँसुओं के लिए क्षमा माँगते हुए कहा। अपने पति की मृत्यु के बाद, उसने अपने किशोर बच्चों की देखभाल के लिए खुद को आगे बढ़ाया। जब चर्च के पुरुषों ने उनका मनोरंजन करने और उन्हें छुट्टी देने के लिए एक सप्ताहांत कैंपिंग सैर प्रदान किया, तो सीमा कृतज्ञता के साथ रोई, अपने आँसुओं के लिए बार-बार माफी माँगी।
हम में से बहुत से लोग अपने आंसुओं के लिए माफी क्यों मांगते हैं? शमौन, एक फरीसी, ने यीशु को भोजन पर आमंत्रित किया। भोजन के बीच में, जब यीशु मेज पर आराम से बैठे हुए थे, एक महिला जो एक पापी जीवन व्यतीत कर रही थी, इत्र का संगमरमर पात्र ले आई। “और उसके पांवों के पास, पीछे खड़ी होकर, रोती हुई, उसके पांवों को आंसुओं से भिगाने और अपने सिर के बालों से पोंछने लगी"(लूका 7:38)। बिना ग्लानि के, इस महिला ने खुलकर अपने प्यार का इजहार किया और फिर यीशु के पैरों को सुखाने के लिए अपने बालों को खोल दिया। यीशु के लिए आभार और प्रेम से उमड़कर, उसने अपने आंशुओं के बाद, सुगंधित चुंबन से भर दिया─कार्य जो जायज के विपरीत था लेकिन जो उस ठंडे मन के मेजबान से विपरीत था।
यीशु की प्रतिक्रिया? उसने उसके प्रेम की विपुल अभिव्यक्ति की प्रशंसा की और उसे "क्षमा किया हुआ" घोषित किया (पद 44-48)।
जब आँसुओं के अधिक बहने का डर होता है हम कृतज्ञता के उन आँसुओं को कुचलने के लिए प्रलोभित होते हैं l लेकिन परमेश्वर ने हमें भावनात्मक प्राणी बनाया है, और हम अपनी भावनाओं का उपयोग उसका सम्मान करने के लिए कर सकते हैं। लूका के सुसमाचार में स्त्री की तरह, आइए हम अपने अच्छे परमेश्वर के लिए अपने प्रेम को बिना किसी खेद के व्यक्त करें जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करता है और हमारी आभारी प्रतिक्रिया को स्वतंत्र रूप से स्वीकार करता है।
अनुत्तरित प्रार्थनाएं
क्या हम वहां पहुँच गए हैं? / अभी नहीं। / क्या हम अब वहां पहुँच गए है? / अभी नहीं। जब हमारे बच्चे छोटे थे, तब हम सोलह घंटे की घर वापसी की पहली (और निश्चित रूप से आखिरी नहीं) यात्रा पर खेले जाने वाले आगे-पीछे के खेल(back-and-forth game) खेले l हमारे सबसे बड़े दो बच्चों ने खेल को जीवित और चलता हुआ रखा, और अगर हर बार उनके मांगने पर मेरे पास एक रुपया होता, तो सहज ही, मेरे पास रुपयों का ढेर होता। यह एक ऐसा सवाल था जिससे मेरे बच्चे आसक्त थे, लेकिन मैं (ड्राइवर) भी उतना ही आसक्त था और सोच रहा था, क्या हम वहां पहुँच गए हैं? और जवाब था, अभी नहीं, लेकिन जल्द ही।
सच कहा जाए, तो अधिकांश वयस्क उस प्रश्न पर भिन्नता पूछ रहे हैं, हालाँकि हम इसे ज़ोर से नहीं बोल सकते। लेकिन हम इसे उसी कारण के लिए पूछ रहे हैं─ हम थके हुए हैं, और हमारी आंखें "शोक से [बैठ गयी हैं]” (भजन 6:7)। हम रात की ख़बरों से लेकर रोज़मर्रा की परेशानी से लेकर कभी न खत्म होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं से लेकर रिश्ते के तनाव तक हर चीज़ के बारे में हम “कराहते कराहते थक” चुके हैं (पद 6), और सूची जारी है। हम रोते हैं : “क्या हम वहां पहुँच गए हैं? कब तक प्रभु, कब तक?”
भजनहार उस तरह की थकान को अच्छी तरह जानता था, और वह ईमानदारी से उस मुख्य प्रश्न को परमेश्वर के पास लेकर आया l एक देखभाल करने वाले माता-पिता की तरह, उसने दाऊद की पुकार सुनी और अपनी बड़ी दया से उन्हें स्वीकार किया (पद 9)। पूछने में कोई शर्म नहीं थी। इसी तरह, आप और मैं स्वर्ग में हमारे पिता के पास हमारी ईमानदार पुकार "कब तक?" और उसका उत्तर हो सकता है "अभी नहीं, लेकिन जल्द ही। मैं भला हूँ। मेरा यकीन करो।"
मसीह जैसी पुर्णता
"पूर्णतावाद मेरे द्वारा ज्ञात सबसे डरावने शब्दों में से एक है," कैथलीन नॉरिस लिखती हैं, मत्ती की पुस्तक में वर्णित "पूर्णता" के साथ आधुनिक-समय पूर्णतवाद का सोच-समझकर तुलना करना। वह वर्णन करती हैं "आधुनिक समय की पूर्णतावाद एक गंभीर मनोवैज्ञानिक पीड़ा के रूप में है जो लोगों को आवश्यक जोखिम लेने के लिए बहुत डरपोक बनाती है।" लेकिन मत्ती में अनुवादित शब्द "सिद्ध" का अर्थ वास्तव में परिपक्व, पूर्ण या संपूर्ण है। नॉरिस ने निष्कर्ष निकाला, “पूर्ण बनने के लिए . . . विकास के लिए जगह बनाना और इतना परिपक्व [बनना] है कि खुद को दूसरों को दे सके।”
पूर्णता को इस तरह से समझने से मत्ती 19 में बताई गई गहन कहानी को समझने में मदद मिलती है, जहां एक व्यक्ति ने यीशु से पूछा कि वह "अनन्त जीवन पाने" के लिए क्या अच्छा कर सकता है (पद 16)। यीशु ने उत्तर दिया, "आज्ञाओं को [मानो]" (पद 17)। उस आदमी ने सोचा कि वह उन सभी का पालन करता है, फिर भी वह जानता था कि कुछ कमी है। "मुझ में किस बात की घटी है?" (पद 20) उसने पूछा।
तभी यीशु ने उस आदमी के धन की पहचान उसके दिल को दबाने वाली पकड़ के रूप में की। उसने कहा कि यदि वह " सिद्ध होना" चाहता है─संपूर्ण, परमेश्वर के राज्य में दूसरों को देने और प्राप्त करने के लिए तैयार है─तो उसे उस चीज़ को छोड़ने के लिए तैयार होना चाहिए जो उसके हृदय को दूसरों से दूर कर रहा था (पद 21)।
हम में से प्रत्येक के पास सिद्धता का अपना संस्करण है─ऐसी संपत्ति या आदतें जिन्हें हम नियंत्रण में रहने के एक निरर्थक प्रयास के रूप में पकड़ते हैं। आज, यीशु के समर्पण के कोमल निमंत्रण को सुनें—और उस संपूर्णता में स्वतंत्रता पाएं जो केवल उसमें संभव है (पद 26)।
त्रियेक परमेश्वर क्यों महत्वपूर्ण है
मसीही कहते हैं कि वे एक ईश्वर में विश्वास करते हैं; जो कि एकमेव परमेश्वर है। परंतु वह तीन व्यक्तित्व भी हैं: पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा। यह बहुत उलझन में डाल देने वाली बात है।
हम परमेश्वर में अपना भरोसा रखते हैं
बच्चा अगले छह सप्ताह में नही होनेवाला था, लेकिन डॉक्टर ने विनीता को अभी-अभी “कोलेस्टेसिस (cholestasis)” बिमारी का निदान किया था, गर्भावस्था में जिगर (कलेजे) की यह परेशानी आम है। भावनाओं के बवंडर में, विनीता को अस्पताल ले जाया गया जहाँ उसने इलाज पाया और उससे कहा गया कि उसका प्रसव चौबीस घंटे में किया जाएगा! अस्पताल के एक अन्य हिस्से में, वेंटिलेटर और अन्य उपकरण जो COVID-19 मामलों के हमले के लिए आवश्यक थे, लगाए जा रहे थे। इसके कारण, विनीता को घर भेज दिया गया। उसने परमेश्वर और उसकी योजनाओं पर भरोसा करने का निर्णय लिया, और उसने कुछ दिनों बाद एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया।
जब पवित्रशास्त्र हम में जड़ें जमा लेता है, तो यह कठिन परिस्थितियों में हमारे प्रतिक्रिया करने के तरीके को बदल देता है। यिर्मयाह ऐसे समय में रहता था जब अधिकांश समाज मानवीय गठबंधनों पर भरोसा करता था, और मूर्तियों की पूजा प्रचलित थी। भविष्यद्वक्ता उस व्यक्ति की तुलना जो "मनुष्य पर भरोसा रखता है, और उसका सहारा लेता है, जिसका मन यहोवा से भटक जाता है” (यिर्मयाह 17:5) उस व्यक्ति के साथ करता है जो परमेश्वर पर भरोसा रखता है। "धन्य है वह . . . जो यहोवा पर भरोसा रखता है . . . वह उस वृक्ष के समान होगा जो नदी के किनारे लगा हो . . . और सूखे वर्ष में भी उनके विषय में कुछ चिंता न होगी, क्योंकि वह तब भी फलता रहेगा” (पद 7–8)।
यीशु में विश्वासियों के रूप में, हमें विश्वास से जीने के लिए बुलाया गया है जब हम समाधान के लिए उसकी ओर देखते हैं। जब वह शक्ति प्रदान करता है, तो हम उससे डरना या उस पर भरोसा करना चुन सकते हैं। परमेश्वर कहता हैं कि हम धन्य हैं—पूरी तरह से संतुष्ट—जब हम उस पर भरोसा करना चुनते हैं।