यह एक कठिन दिन था जब मेरे पति को पता चला कि कई अन्य लोगों की तरह, उन्हें भी जल्द ही कोविद-19 महामारी के परिणामस्वरूप रोजगार से निकाल दिया जाएगा। हमें विश्वास था कि परमेश्वर हमारी मूल जरूरतों को पूरा करेंगे, लेकिन यह कैसे होगा इसकी अनिश्चितता अभी भी भयानक थी।
जैसे ही मैं अपनी उलझी हुई भावनाओं के साथ आगे बढ़ी, मैंने खुद को सोलहवीं शताब्दी के सुधारक जॉन ऑफ द क्रॉस की एक पसंदीदा कविता पर दोबारा गौर करते हुए पाया। शीर्षक “मैं अंदर गया, मुझे नहीं पता कहाँ,” कविता समर्पण की यात्रा में पाए जाने वाले आश्चर्य को दर्शाती है, जब, “जानने की सीमाओं को पार करते हुए,” हम “परमेश्वर को उसके सभी रूपों में समझना” सीखते हैं। और इसलिए ऐसे समय के दौरान मैंने और मेरे पति ने यही करने की कोशिश की : जो हमारे नियंत्रण में है उससे अपना ध्यान हटाकर और अनपेक्षित, रहस्यमय और उन सुन्दर तरीको को समझे जिनके द्वारा हम परमेश्वर को अपने चारों ओर पा सकते है।
प्रेरित पौलुस ने विश्वासियों को देखी से अनदेखी, बाहरी से भीतर की वास्तविकताओं की ओर, और अस्थायी संघर्षों से “सनातन महिमा जो उन सब से अधिक है” की यात्रा के लिए आमंत्रित किया (2 कुरिन्थियों 4:17)।
पौलुस ने ऐसा आग्रह इसलिए नहीं किया क्योकि उसे उनके संघर्षों पर सहानुभूति नहीं थी। वह जानता था कि जो कुछ वे समझ सकते हैं, उसे छोड़ देने के द्वारा ही वे आराम, आनंद और आशा का अनुभव कर सकते हैं जिसकी उन्हें अत्यधिक आवश्यकता थी (पद. 10, 15-16)। तथा वे सभी चीजों को नया बनाने वाले मसीह के जीवन के आश्चर्य को जाने।
आपने परमेश्वर की महिमा को कब उन तरीकों से अनुभव किया है जिन्हें आप समझ नहीं पाए? आप अपने जीवन के किन क्षेत्रों में "जानने की सीमाओं" से परे परमेश्वर का अनुभव कर सकते हैं?
प्रेमी परमेश्वर, हमारे संसार में इतना दिल टूटना और अनिश्चितता है, इतना कि हम समझ नहीं सकते। मेरी सहायता करे कि मैं अपनी समझ से परे आपका अद्भुत नया जीवन जो मेरे चारों ओर है उसके पीछे चलना सीखूं।