रात के सेवक
अभी गहन-चिकित्सा(intensive-care) हॉस्पिटल में सुबह का 3 बजा है। एक चिंतित मरीज एक घंटे में चौथी बार कॉल बटन दबाता है l रात की पाली की नर्स बिना किसी शिकायत के उत्तर देती है l शीघ्र ही एक और मरीज ध्यानाकर्षित करने के लिए चिल्ला रहा है l नर्स चकित नहीं है l उसने अपने हॉस्पिटल के दिन के हलचल से बचने के लिए पाँच वर्ष पूर्व रात की पाली का आग्रह किया था l फिर सच्चाई सामने आई l अक्सर रात के काम का अर्थ अतिरिक्त काम जैसे मरीज को खुद उठाना और घुमाना होता है l इसका अर्थ रोगी की स्थितियों की ध्यानपूर्वक देख-रेख करना होता है ताकि आपात स्थिति में डॉक्टरों को सूचित किया जा सके l
अपने रात के सहकर्मियों के साथ निकट मित्रता से हर्षित, यह नर्स अभी भी पर्याप्त नींद लेने के लिए संघर्ष करती है l अक्सर, वह अपने कार्य को प्रमुखता देते हुए, अपनी कलीसिया से प्रार्थना करने के लिए कहती है l “परमेश्वर की प्रशंसा हो, उनकी प्रार्थनाएं अंतर लाती है l”
रात के एक कार्यकर्ता के लिए उसकी प्रशंसा अच्छी और सही है─साथ ही साथ हम सब के लिए भी l भजनकार ने लिखा, “हे यहोवा के सब सेवकों, सुनो, तुम जो रात रात को यहोवा के भवन में खड़े रहते हो, यहोवा को धन्य करो! अपने हाथ पवित्रस्थान में उठाकर, यहोवा को धन्य कहो” (भजन संहिता 134:1-2)।
मंदिर में सेवक/प्रहरी का कार्य करने वाले, लेवियों के लिए लिखा गया यह भजन, उनके अत्यावश्यक कार्य को स्वीकार करता है─जो दिन और रात मंदिर की सुरक्षा करते थे l हमारे नॉनस्टॉप/निरंतर संसार में, रात में काम करनेवाले कार्यकर्ताओं के लिए इस भजन को साझा करना विशेष रूप से उचित है, फिर भी हममें से हर एक रात में परमेश्वर की स्तुति कर सकता है l जैसे कि भजनकार आगे कहता है, “यहोवा जो आकाश और पृथ्वी का कर्ता है, वह सिय्योन में से तुझे आशीष देवे (पद.3)।
आत्मिक पड़ताल
कीमोथेरेपी ने मेरे ससुर के अग्नाशय में ट्यूमर को छोटा कर दिया, जब तक कि ऐसा नहीं हुआ l जब वह ट्यूमर दोबारा बढ़ने लगा, उन्हें जीवन और मृत्यु के चुनाव के साथ छोड़ दिया गया l उन्होंने अपने डॉक्टर से पूछा, “क्या मुझे और कीमो लेना चाहिए या कुछ और, शायद एक दूसरी दवाई या फिर रेडिएशन?”
यहूदा के लोगों के पास भी इसी प्रकार का मृत्यू और जीवन का प्रश्न था l युद्ध और अकाल से थकित, परमेश्वर के लोगों ने सोचा कि क्या उनकी समस्या अत्यधिक मूर्तिपूजा थी या पर्याप्त नहीं थी l उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि उन्हें एक झूठे देवता को और अधिक बलिदान चढाने चाहिए और देखना चाहिए कि क्या वह उनकी रक्षा करेगी और उन्हें समृद्ध करेगी (यिर्मयाह 44 :17)।
यिर्मयाह कहता है कि उन्होंने अपनी परिस्थिति का बेतहाशा गलत पड़ताल किया है l उनकी समस्या मूर्तियों के प्रति प्रतिबद्धता की कमी नहीं थी; उनकी समस्या यह थी कि उनके पास वे थीं l उन्होंने भविष्यवक्ता से कहा, “जो वचन तूने हम को यहोवा के नाम से सुनाया है, उसको हम नहीं सुनने की” (पद.16) l यिर्मयाह में उत्तर दिया “क्योंकि तुम धूप जलाकर यहोवा के विरुद्ध पाप करते और उसकी नहीं सुनते थे, और उसकी व्यवस्था और विधियों और चितौनियों के अनुसार नहीं चले, इस कारण यह विपत्ति तुम पर आ पड़ी है” (यिर्मयाह 44:23) l
यहूदा की तरह, हम उन पापपूर्ण विकल्पों को दुगना करने के लिए परीक्षा में पड़ सकते हैं जिन्होंने हमें संकट में डाल दिया है l संबंध की समस्याएं? हम और अलग हो सकते हैं। आर्थिक विषय? हम खुशी पाने के लिए अपनी मर्जी से खर्च करेंगे l दरकिनार किया गया? हम उनकी तरह ही निर्दई हो जाएंगे। परंतु मूर्तियां जिन्होंने हमारी समस्याओं को बढ़ाया है हमें बचा नहीं सकती हैं । केवल यीशु ही हमें हमारी समस्याओं से बाहर लेकर आ सकता है जब हम उसकी ओर मुड़ते हैं।
विश्वास में बढ़ना
जब मैंने अपनी बागवानी शुरू किया, मैं जल्दी उठता और अपने सब्जी के बगीचे में यह देखने के लिए पहुंचता था कि कहीं कुछ अंकुरित तो नहीं हुआ l कुछ नहीं l “त्वरित उद्यान विकास” के लिए इंटरनेट पर खोजने के बाद, मुझे पता चला कि एक पौधे के जीवन काल का सबसे महत्वपूर्ण चरण उसका अंकुरण होता है l जानकर कि यह प्रक्रिया तेज नहीं किया जा सकता, मैं छोटे अंकुरों की शक्ति को सराहने लगा जो मिट्टी के भीतर से सूर्य के किरण की ओर और स्वभाविक मौसम के उनके लचीलेपन की ओर निकलने के लिए संघर्ष कर रहे थे l कुछ सप्ताहों तक धीरज धरने के बाद ज़मीन से बाहर फूटकर निकलते हरे अंकुरों ने मेरा स्वागत किया।
कभी-कभी हमारे जीवन में जीत और विजय को देख स्तुति करना सरल होता है, इसी तरह यह स्वीकार किए बिना कि हमारे चरित्र में वृद्धि अक्सर समय और संघर्ष के द्वारा होती है l याकूब हमें समझाता है कि जब हम “नाना प्रकार की परीक्षाओं में” पड़ें “तो इसको पूरे आनंद की बात” समझें (याकूब 1:2) l परंतु परीक्षाओं के विषय आनंद की बात क्या हो सकती है?
परमेश्वर कभी-कभी हमें चुनौतियों और संघर्ष से होकर जाने देता है जिससे कि हम वैसे बन सके, जिसके लिए उसने हमें बुलाया है। वह इस प्रत्याशा में प्रतीक्षा करता है कि हम जीवन की परीक्षाओं से “पूरे और सिद्ध” हो जाएं और हममें “किसी बात की घटी न रहे” (पद.4) l यीशु में जड़वत रहकर, हम किसी भी चुनौती में दृढ़ रहते हुए, और मजबूत होते हुए और आखिरकार अपने जीवनों में आत्मा के फल को खिलने की अनुमति देते हैं (गलतियों 5: 22–23)। उसकी बुद्धि हमें प्रत्येक दिन आवश्यक्तानुसार पोषण प्रदान करती है (यूहन्ना 15:5)।
दोबारा गाएँ
ऑस्ट्रेलिया का राज्य करने वाला हनीइटर पक्षी(honeyeater bird) मुश्किल में है─वह अपना गीत खो रहा है l हालांकि, किसी समय, यह प्रचुर प्रजाति थी, अब मात्र 300 पक्षी ही बचे हैं। और इतने कम लोगों से सीखने के लिए, नर अपने अद्वितीय गीत भूल रहे हैं और साथियों को आकर्षित करने में असफल हो रहे हैं l
धन्यवाद हो कि संरक्षणकर्ताओं के पास इन पक्षियों को बचाने की एक योजना है कि वे उनके लिए गाएँ l या फिर और सटीक तौर पर, उनको दूसरे हनीइटर पक्षियों की रिकॉर्डिंग सुनाई जाए ताकि वे पुनः अपने हृदय का गीत गा सकें l जब नर पक्षी उस स्वर को याद करके पुनः मादा पक्षियों को आकर्षित करेंगे, यह आशा की जाती है कि प्रजाति पुनः संख्या में बढ़ेगी l
भविष्यवक्ता सपन्याह समस्या में पड़े लोगों को संबोधित करता है l उनमें इतनी अधिक भ्रष्टता के साथ, उसने घोषणा की कि परमेश्वर का न्याय आ रहा था (सपन्याह 3:1-8) l जब बाद में गिरफ्तारी और निर्वासन के रूप में ऐसा हुआ, वे लोग भी अपना गीत भूल गए (भजन संहिता 137:4) l परंतु सपन्याह ने न्याय के परे एक काल को पहले ही देखा जब परमेश्वर इन तबाह लोगों से मिलने आएगा, उनके पाप क्षमा करेगा, और उनके लिए गाएगा : “वह तेरे कारण आनंद से मगन होगा, वह अपने प्रेम के मारे चुपका रहेगा; फिर ऊंचे स्वर से गाता हुआ तेरे कारण मगन होगा” (सपन्याह 3:17)। जिसके परिणामस्वरूप, लोगों के हृदय में वह गीत पुनः जागृत होगा (पद.14)।
चाहे हमारी अनआज्ञाकारिता या जीवन की आजमाईशों के द्वारा, हम भी अपना हृदय गीत भूल सकते हैं l परंतु हमारे ऊपर एक आवाज निरंतर क्षमा और प्रेम के गीत गा रही है। आइए उस स्वर की मधुरता को सुने और उसके साथ गाएं।