समकालीन डच कलाकार एगबर्ट मॉडडरमैन की पेंटिंग साइमन ऑफ साईरेने(Simon of Cyrene) से उदास आँखें झांकती हैं l शमौन की आँखें उसके अत्यधिक भौतिक एवं भावनात्मक बोझ को प्रगट करती हैं l बाइबल के वर्णन मरकुस 15 में, हम सीखते हैं कि शमौन को दर्शकों की भीड़ से खींच कर यीशु का क्रूस उठाने के लिए विवश किया गया था l
मरकुस हमें बताता है कि शमौन उत्तर अफ्रीका के एक बड़े शहर कुरेन का था जहाँ यीशु मसीह के समय यहूदियों की बहुत बड़ी आबादी रहती थी l शमौन शायद फसह का पर्व मनाने यरूशलेम आया था l जहां पहुंचकर वह अपने आप को एक अन्यायपूर्ण वध के बीच पाता है लेकिन यीशु को एक छोटा लेकिन अर्थपूर्ण सहयोग देता है (मरकुस 15:21) l
इससे पूर्व मरकुस रचित सुसमाचार में, यीशु अपने चेलों को कहता है, “जो कोई मेरे पीछे आना चाहे, वह अपने आपे से इन्कार करे और अपना क्रूस उठाकर, मेरे पीछे हो ले” (8:34)। जो यीशु अपने चेलों से सांकेतिक रूप में कह रहे थे वो गोलगता के मार्ग में जाते समय शमौन ने वास्तव में करके ही दिखा दिया : उसने उस क्रूस को जो उसे दिया गया था यीशु के लिए उठा लिया।
हमारे पास भी उठाने के लिए “क्रूस” हैं हो सकता हैं : शायद वह बीमारी, सेवा का कोई चुनौतीपूर्ण कार्यभर, किसी प्रिय की मृत्यु, या हमारे विश्वास के लिए सताव l जब हम इन दुखों का सामना विश्वास द्वारा करते हैं तो हम लोगों को यीशु का दुःख और क्रूस पर उसके बलिदान की ओर संकेत करते हैं l यह उसका उसका क्रूस था जो परमेश्वर और हमारे बीच शांति स्थापित किया और हमारी अपनी यात्रा के लिए सामर्थ्य प्रदान की l
आपको कौन सा “क्रूस” उठाने के लिए कहा गया है? आप कैसे इस समस्या का प्रयोग लोगों को यीशु की ओर लाने के लिए कर सकते हैं?
यीशु, धन्यवाद हो कि जब मैं अपना क्रूस उठाकर आपके पीछे चलता हूँ आप मुझे समझते और मेरी पीड़ा के साथ सहानुभूति रखते हैं l जब यात्रा कठिन हो मुझे साहस और सामर्थ दीजिये l