यीशु में विश्वासी होने के बाद मैंने अपने माँ के साथ सुसमाचार बाँटा। यीशु पर भरोसा करने का निर्णय लेने के बदले, जैसा मैंने सोचा था, उसने  मुझ से एक साल तक बात करना बंद कर दी। यीशु का अनुसरण करने का दावा करने वाले लोगों के साथ उसके बुरे अनुभवों ने उसे मसीह में अविश्वासी बना दिया। मैंने उसके लिए प्रार्थना की और सप्ताह में एक बार मैं उनके पास जाता था। पवित्र आत्मा ने मुझे दिलासा दी और मेरे दिल पर काम करना जारी रखा क्योंकि मेरी माँ ने चुप्पी साध ली थी। जब उसने आखिरकार मेरे फोन कॉल का जवाब दिया, तो मुझे जब भी मौका मिलता उसे उसके लिये अपने प्रेम के लिये प्रतिबद्धता दिखाता और  परमेश्वर की सच्चाई के बारे में  बताता। हमारे सुलह के महीनों बाद, उसने कहा कि मैं बदल गई हूँ। लगभग एक साल बाद उसने यीशु को अपने उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण किया, और इसके परिणामस्वरूपए हमारा रिश्ता गहरा हुआ।   

यीशु में विश्वासियों को मानवता को दिए गए सबसे महान उपहार तक पहुंच है और वह उपहार है मसीह। प्रेरित पौलुस कहता है कि “में उसके ज्ञान की सुगन्ध हर जगह फैलानी है” (2कुरिन्थियों 2रू14)। वह उन लोगों को संदर्भित करता है जो सुसमाचार को मसीह की सुखद सुगंध के रूप में साझा करते हैं, जो विश्वास करते हैं, लेकिन मानते हैं कि जो यीशु को अस्वीकार करते हैं उनके लिये मृत्यु की गन्ध हैं। (पद् 15.16)

जब हम मसीह को अपने उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण करते हैं, तो हमें पृथ्वी पर अपने सीमित समय का उपयोग दूसरों से प्रेम करते हुए उसके जीवन–परिवर्तनकारी सत्य को फैलाने के लिए सौभाग्य प्राप्त होता है। हमारे सबसे कठिन और अकेले क्षणों में भी हम भरोसा कर सकते हैं कि वह हमें वह प्रदान करेगा जिसकी हमें आवश्यकता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि व्यक्तिगत कीमत क्या है, परमेश्वर का सुसमाचार हमेशा साझा करने लायक है।