ट्रेन में पढ़ते समय, जाह्नवी अपनी किताब के वाक्यों को हाइलाइट करने और किताब के हाशिये (मार्जिन) में नोट्स लिखने में व्यस्त थी। लेकिन पास में बैठी एक मां और बच्चे के बीच हुई बातचीत ने उसे रोक दिया। माँ अपने बच्चे को अपनी लाइब्रेरी की किताब में बेकार के चित्र बनाने को मना कर रही थी। जाह्नवी ने जल्दी से अपनी कलम हटा दी, वह नहीं चाहती थी कि बच्चा जाह्नवी की मिसाल पर चलकर अपनी माँ की बातों को नज़रअंदाज़ करे। वह जानती थी कि बच्चा उधार ली गई किताब को नुकसान पहुंचाने और अपनी खुद की किताब में नोट्स बनाने के बीच के अंतर को नहीं समझेगा।

जाह्नवी के कार्यों ने मुझे 1 कुरिन्थियों 10:23–24 में प्रेरित पौलुस के प्रेरणादायक  शब्दों की याद दिला दी: “सब वस्तुयें मेरे लिये उचित तो हैं, परन्तु सब लाभ की नहीं; सब वस्तुयें मेरे लिये उचित तो हैं, परन्तु  सब वस्तुंओं से उन्नति नहीं। कोई अपनी ही भलाई को न ढूंढे, बरन औरों  की भलाई को ढूंढे।” कुरिन्थ की युवा कलीसिया में यीशु के विश्वासियों ने मसीह में अपनी स्वतंत्रता को व्यक्तिगत हितों को आगे बढ़ाने के अवसर के रूप में देखा। परन्तु पौलुस ने लिखा कि उन्हें इसे दूसरों को लाभ पहुँचाने और उनको बनाने के अवसर के रूप में देखना चाहिए। उसने उन्हें सिखाया कि सच्ची स्वतंत्रता वह करने का अधिकार नहीं है जो वे चाहते हैं, परन्तु परमेश्वर के लिए जैसा उन्हें करना चाहिए वैसा करने की स्वतंत्रता है। 

जब हम अपनी स्वतंत्रता का उपयोग खुद की सेवा करने के बजाय दूसरों को बनाने के लिए करते हैं  तब हम यीशु का अनुकरण करते हैं  ।