बुद्धि और समझ
1373 में, जब नॉर्विच की जूलियन तीस वर्ष की थी, वह बीमार हो गई और लगभग मर गई थी। जब उसके पादरी ने उसके साथ प्रार्थना की, तो उसने कई दर्शनों का अनुभव किया जिसमें उसने यीशु को सूली पर चढ़ाए जाने पर विचार किया। चमत्कारिक रूप से अपना स्वास्थ्य ठीक होने के बाद, उसने अगले बीस साल चर्च के एक साइड रूम में एकांत में रहने, प्रार्थना करने और अनुभव के बारे में सोचने में बिताए। उसने निष्कर्ष निकाला कि “प्रेम उसका प्रयोजन था” अर्थात्– मसीह का बलिदान परमेश्वर के प्रेम की सर्वोच्च अभिव्यक्ति है।
जूलियन के रहस्योद्घाटन प्रसिद्ध हैं, लेकिन लोग अक्सर जिस चीज को नजरअंदाज कर देते हैं, वह समय और प्रयास है जिसे उसने प्रार्थना के साथ बिताये थे वह जानने के लिये जो परमेश्वर ने उसे बताया था। उन दो दशकों में उसने यह समझने की कोशिश की कि उसकी उपस्थिति के इस अनुभव का क्या अर्थ है, जब उसने उससे उसकी बुद्धि और मदद माँगी।
जैसा कि उसने जूलियन के साथ किया था, परमेश्वर अनुग्रहपूर्वक स्वयं को अपने लोगों पर प्रकट करता है, जैसे कि बाइबिल के वचनों के द्वारा, उसकी शांत छोटी आवाज एक गीत के माध्यम से, या यहाँ तक कि केवल उसकी उपस्थिति के प्रति जागरूकता से। जब ऐसा होता है, तो हम उसकी बुद्धि और सहायता प्राप्त कर सकते हैं। यह वह बुद्धि है जिसे राजा सुलैमान ने अपने पुत्र को यह कहते हुए अनुकरण करने का निर्देश दिया था कि वह अपना कान बुद्धि की ओर लगाए, और अपना हृदय समझ की ओर लगाए (नीतिवचन 2:2)। तब वह परमेश्वर के ज्ञान को प्राप्त करेगा (पद 5)।
परमेश्वर हमें विवेक और समझ देने का वादा करता है। जैसे–जैसे हम उसके चरित्र और तरीकों के बारे में गहन ज्ञान में बढ़ते हैं, हम उसका सम्मान कर सकते हैं और उसे समझ सकते हैं।
इससे बड़ा प्रेम नहीं
2021 में भारत छोड़ो आंदोलन की उन्नासवीं वर्षगांठ के स्मरणोत्सव ने उन स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित किया जिन्होंने निस्संदेह देश और उसके लोगों के लिए अपना जीवन दिया। 8 अगस्त 1944 को, भारत छोड़ो आंदोलन का आरम्भ करते हुये गांधी जी ने अपना प्रसिद्ध भाषण “करो या मरो” दिया। गांधी जी ने व्यक्त किया “हम या तो भारत को मुक्त कर देंगे या इस प्रयास में मर जाएंगे; हम अपनी गुलामी की स्थिति को देखने के लिए जीवित नहीं रहेंगे।”
बुराई को रोकने और उत्पीड़ितों को मुक्त करने के लिए अपने आप को नुकसान पहुँचाने की इच्छा, यीशु के शब्दों को याद दिलाती है, “इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपने प्राण दे।” (यूहन्ना 15:13)। ये शब्द मसीह को अपने अनुयायियों को एक दूसरे से प्रेम करना सिखाने के समय आते हैं। लेकिन वह चाहता था कि वे इसकी कीमत, और इस प्रकार के प्रेम की गहराई को समझें– एक प्रेम का उदाहरण जब कोई स्वेच्छा से किसी अन्य व्यक्ति के लिए अपने जीवन का बलिदान करता है। दूसरों से बलिदानी प्रेम करने के लिए यीशु का आह्वान एक दूसरे से प्रेम करने की उसकी आज्ञा का आधार है (पद 17)।
शायद हम परिवार के एक बुज़ुर्ग सदस्य की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए समय देकर बलिदान रूपी प्रेम दिखा सकते हैं। हम स्कूल में एक तनावपूर्ण सप्ताह के दौरान अपने भाई–बहनों का काम करके उनकी ज़रूरतों को सबसे पहले रख सकते हैं। हम अपने पति या पत्नी को सोने की अनुमति देने के लिए बीमार बच्चे के साथ अतिरिक्त शिफ्ट भी ले सकते हैं। जब हम दूसरों से प्रेम करते हैं, तो हम प्रेम की सबसे बड़ी अभिव्यक्ति प्रदर्शित करते हैं।
वह मेरे दिल को जानता है
एक किराने की दुकान पर एक ग्राहक द्वारा अपना लेन–देन पूरा करने के बाद, मैं बिलिंग काउंटर पर गया, और अपने सामान का भुगतान करने के लिए आगे बढ़ा। एकाएक एक क्रोधित स्त्री से मेरा सामना हुआ। मैं यह नहीं देख सका कि वह वास्तव में चेकआउट के लिए कतार में थी। अपनी गलती को स्वीकार करते हुए मैंने ईमानदारी से कहा, “मुझे क्षमा करें।” उसने जवाब दिया (हालांकि इन शब्दों तक सीमित नहीं) “नहीं, तुम नहीं हो”
क्या आपने कभी खुद को ऐसी स्थिति में पाया है जहां आप गलत थे, आपने इसे स्वीकार किया, और चीजों को सही करने की कोशिश की—केवल फटकार सुनने के लिए? गलत समझा जाना या गलत राय लगाया जाना अच्छा नहीं लगता और हम उन लोगों के जितने करीब होते हैं, जो हमें ठेस पहुँचाते हैं या जिन्हें हमें ठेस पहुँचाते हैं, उतना ही अधिक दुख होता है। हम तो चाहते हैं कि वे हमारे दिलों को देख सकें!
यशायाह 11:1–5 में भविष्यवक्ता यशायाह द्वारा दिया गया चित्र पूर्ण न्याय के लिए बुद्धि के साथ परमेश्वर द्वारा नियुक्त एक शासक का है। “वह अपनी आंखों से जो कुछ देखता है, उसका न्याय नहीं करेगा, और जो वह अपने कानों से सुनता है, उसके द्वारा निर्णय नहीं करेगा, परन्तु वह दरिद्र का न्याय धर्म से करेगा, और पृय्वी के कंगालों का न्याय सच्चाई से करेगा” (पद 3--4)। यह यीशु के जीवन और सेवकाई में पूरा हुआ। यद्यपि हमारी पापपूर्णता और दुर्बलता में हम हमेशा इसे ठीक नहीं कर पाते हैं, हम यह निश्चय कर सकते हैं कि स्वर्ग का सब कुछ देखने और सब कुछ जानने वाला परमेश्वर हमें पूरी तरह से जानता है और हमारा न्याय सही ढंग से करता है।
जीवित और संपन्न
एक एनिमेटेड अंग्रेजी फिल्म में एक गुफावासी परिवार का मानना है कि जीवित रहने का एकमात्र तरीका है अगर पैक [उनका छोटा परिवार] एक साथ रहता है। वे दुनिया और दूसरों से डरते हैं, इसलिए रहने के लिए एक सुरक्षित जगह की तलाश में वे अपने चुने हुए क्षेत्र में पहले से ही एक अजीब परिवार के मिलने पर डर से भर जाते हैं। लेकिन वे जल्द ही अपने नए पड़ोसियों के मतभेदों को अपनाना सीख जाते हैं, उनसे ताकत हासिल करते हैं और एक साथ जीवित रहते हैं। वे पाते हैं कि वे वास्तव में उनके साथ आनन्दित हैं और उन्हें पूरी तरह से जीवन जीने के लिए दूसरों की आवश्यकता है।
रिश्ते में रहना जोखिम भरा हो सकता है लोग हमें चोट पहुँचा सकते हैं, और पहुंचाते हैं। फिर भी यह अच्छे कारण के लिए है कि परमेश्वर ने अपने लोगों को एक देह (चर्च) में एक साथ रखा है। दूसरों के साथ संगति में, हम समझ में बढ़ते हैं (इफिसियों4:13)। विनम्र, शान्त और धैर्यवान होने में मदद के लिए हम उस पर निर्भर रहना सीखते हैं (पद 2)। हम एक दूसरे को प्रेम में (पद 16) बनाने के द्वारा एक दूसरे की मदद करते हैं। जब हम एक साथ इकट्ठे होते हैं तो हम अपने वरदानों का उपयोग करते हैं और दूसरों से सीखते हैं जो उनका उपयोग करते हैं जो बदले में हमें परमेश्वर के साथ चलने और उसकी सेवा करने में सक्षम बनाता है।
जब वह आपकी अगुवाई करता है तो परमेश्वर के लोगों के बीच अपना स्थान ढूँढ़ें, यदि आपको वह अभी तक नहीं मिला है। आप जीवित रहने से ज्यादा कुछ करेंगे — साझा किये प्रेम में आप परमेश्वर के लिए सम्मान लाएंगे और यीशु के समान बनेंगे। और जब हम यीशु और अन्य लोगों के साथ बढ़ते संबंधों से गुजरते हैं तो हम सब उस पर निर्भर हों।
उदारता
आज की अत्यधिक व्यक्तिगत दुनिया में, उदारता एक ऐसा शब्द है जिसके बारे में हम शायद ही कभी सोचते हैं, और उसके अनुसार बहुत कम जीते हैं। विश्वासियों के रूप में भी, स्वयं को महत्व देने के द्वारा इस बहाव में बहना आसान है कि हम दूसरों की आवश्यकताओं की उपेक्षा करते हैं। परिणामस्वरूप हम यह याद रखने और पहचानने…