मैं उससे 1970 के दशक में मिला था जब मैं हाई स्कूल का शिक्षक और बास्केटबॉल कोच था, और वह लम्बा, दुबला-पतला नया विद्यार्थी l जल्द ही वह मेरे बास्केटबॉल टीम और मेरी कक्षाओं में था—और एक मित्रता आरम्भ हो गयी l वही मित्र, जो मेरे साथ सह-सम्पादक का काम कई वर्षों तक किया था, मेरी सेवानिवृत्ति समारोह (रिटायरमेंट पार्टी) में मेरे सामने खड़ा था और जिसने हमारी पुरानी मित्रता की विरासत के बारे में साझा किया l 

परमेश्वर के प्रेम से जुड़े मित्रों के बारे में ऐसा क्या है जो हमें उत्साहित करता है और हमें यीशु के निकट लाता है? नीतिवचन के लेखक ने समझा कि मित्रता के दो उत्साहजनक अंश हैं : पहला, सच्चे मित्र बहुमूल्य सलाह देते हैं, भले ही देना या लेना आसान न हो (27:6) : “जो घाव मित्र के हाथ से लगें वह विश्वासयोग्य हैं,” लेखक समझाता है l दूसरी बात, एक मित्र जो निकट है और सुलभ है संकट के समय में महत्वपूर्ण है : “प्रेम करनेवाला पड़ोसी, दूर रहनेवाले भाई से कहीं उत्तम हैI” (पद.10)

जीवन में अकेले उड़ना हमारे लिए अच्छा नहीं है l जैसा कि सुलैमान ने कहा : “एक से दो अच्छे हैं, क्योंकि उनके परिश्रम का अच्छा फल मिलता है” (सभोपदेशक 4:9) l जीवन में, हमें दोस्त की ज़रूरत है और हमें दोस्त बनने की ज़रूरत है l परमेश्वर हमें “भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे से स्नेह [रखने]” (रोमियों 12:10) और “एक दूसरे का भार [उठाने]” (गलातियों 6:2) में सहायता कर सकता है—ऐसा मित्र बनना जो दूसरों को प्रोत्साहित कर सके और उन्हें यीशु के प्रेम के निकट ला सके l