1941 में, इंग्लैंड के ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में सुकराती क्लब की स्थापना हुयी l इसका गठन यीशु के विश्वासियों और नास्तिकों या अज्ञेयवादियों(agnostics) के बीच वाद-विवाद(debate) को प्रोत्साहित करने के लिए किया गया था l 

एक धर्मनिरपेक्ष विश्वविद्यालय में धार्मिक बहस असामान्य नहीं है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि पन्द्रह वर्षों तक सुकराती क्लब की अध्यक्षता किसने की— वह थे महान मसीही विद्वान सी.एस.लियुईस l अपनी सोच की जाँच लेने के इच्छुक, लियुईस का मानना था कि मसीह में विश्वास बड़ी जाँच के लिए खड़ा हो सकता था l वह जानते थे कि यीशु में विश्वास करने के लिए विश्वसनीय, तर्कसंगत प्रमाण हैं l 

एक मायने में, लियुईस पतरस की उस सलाह का अभ्यास कर रहे थे जो सताव से बिखरे हुए विश्वासियों के लिए थी, जब उसने उन्हें याद दिलाया, “मसीह को प्रभु जानकार अपने अपने मन में पवित्र समझो l जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे, उसे उत्तर देने के लिए सर्वदा तैयार रहो, पर नम्रता और भय के साथ” (1 पतरस 3:15) l पतरस दो मुख्य बिंदु पेश करते है : हमारे पास मसीह में हमारी आशा के लिए अच्छे कारण हैं और हमें अपने तर्क को “नम्रता और भय” के साथ प्रस्तुत करना है l 

मसीह पर विश्वास करना धार्मिक पलायनवाद(escapism) या ख्याली पुलाव(wishful thinking) नहीं है l हमारा विश्वास इतिहास के तथ्यों पर आधारित है, जिसमें यीशु का पुनरुत्थान और सृष्टिकर्ता की साक्षी देने वाली सृष्टि के प्रमाण सम्मिलित हैं l जब हम परमेश्वर की बुद्धि और आत्मा की शक्ति में विश्राम करते हैं, तो हम उन कारणों को साझा करने के लिए तैयार हो सकते हैं जो हमारे पास हमारे महान परमेश्वर पर भरोसा करने के लिए हैं l