हंगरी देश में जन्मे गणितज्ञ अब्राहम वाल्ड ने 1938 में संयुक्त राज्य अमेरिका आने के बाद द्वीतीय विश्व युद्ध के प्रयासों के लिए अपने कौशल का इस्तेमाल किया। सेना अपने विमान को दुश्मन की गोला-बारी से बचाने के तरीकों की तलाश कर रही थी, इसलिए सांख्यिकीय अनुसंधान समूह (statistical research group)में वाल्ड और उनके सहयोगियों से पूछा गया यह पता लगाने के लिए कि दुश्मन की गोला-बारी गोला-बारी से बचाव के लिए सैन्य विमानों की बेहतर सुरक्षा कैसे की जाए। उन्होंने लौटने वाले विमानों की जांच करके यह देखना शुरू किया कि उन्हें सबसे ज्यादा नुकसान कहां हुआ है। लेकिन वाल्ड को गहरी अंतर्दृष्टि का श्रेय दिया जाता है कि लौटने वाले विमान पर होने वाली क्षति केवल वहीं दर्शाती है जहां एक विमान पर आघात होता है मगर वह फिर भी बच जाता है। उन्हें एहसास हुआ की अतिरिक्त कवच की ज़रुरत विमान के जिस हिस्से को पड़ती है वह क्षतिग्रस्त विमान को देख कर पता लगायी जा सकती हैI विमानों का सबसे कमजोर हिस्सा-इंजन- जो नीचे चला गया था और इसलिए जांच नहीं की जा सकी। सुलेमान हमें हमारे सबसे कमजोर हिस्से – हमारे मन की रक्षा करने के बारे में सिखाता है। वह अपने बेटे को “[अपने] मन की रक्षा” करने का निर्देश देता है क्योंकि जीवन का मूल स्त्रोत वही हैI (नीतिवचन 4:23) परमेश्‍वर के निर्देश जीवन में हमारा मार्गदर्शन करते हैं, हमें गलत फैसलों से दूर ले जाते हैं और हमें सिखाते हैं कि हमें अपना ध्यान कहाँ लगाना है।

यदि हम उसके निर्देशों का पालन करने के द्वारा अपने हृदय को कवच प्रदान करते हैं, तो हम बेहतर तरीके से “[अपने पैरों को] बुराई से दूर रखेंगे” और परमेश्वर के साथ अपनी यात्रा पर स्थिर रहेंगे (पद. 27)। हम हर दिन शत्रु के इलाके में जाने का जोखिम उठाते हैं, परन्तु हमारे मन की रक्षा करने वाली परमेश्वर की बुद्धि के साथ, हम परमेश्वर की महिमा के लिए अच्छी तरह से जीने के अपने लक्ष्य पर केंद्रित रह सकते हैं।