महामारी के दौरान जैसे-जैसे मास्क की अनिवार्यता कमजोर पड़ती गई, वैसे-वैसे जहाँ कहीं भी मास्क रखने की आवश्यकता पड़ती थी, जैसे कि मेरी बेटी का स्कूल, वहाँ मास्क रखने की बात को याद रखना मेरे लिए मुश्किल होता गया। एक दिन जब मुझे एक मास्क की आवश्यकता पड़ी, तो मुझे अपनी कार में केवल एक ही मास्क मिला, जिसे मैंने इसलिए नहीं पहनना चाहा क्योंकि उस पर आगे की तरफ आशीषित लिखा हुआ था। 

मैं बिना संदेशों वाले मास्क पहनना पसंद करता हूँ, और मुझे विश्वास है कि जो मास्क मुझे मिला था उस पर लिखे उस शब्द का बहुत अधिक उपयोग किया गया है। परन्तु मेरे पास कोई विकल्प नहीं था, इसलिए मैंने न चाहते हुए भी वह मास्क लगा लिया। और जब मैं स्कूल में एक नई रिसेप्शनिस्ट के साथ अपनी झुंझलाहट को प्रकट करने ही वाला था, तो मैंने मेरे मास्क पर लिखे हुए शब्द के कारण अपने आप को थोड़ा सम्भाल लिया। मैं एक पाखंडी की तरह नहीं दिखना चाहता था, जो एक जटिल प्रणाली को समझने की कोशिश करते हुए एक दूसरे व्यक्ति के प्रति अधीरता दिखाते हुए अपने मुंह पर “आशीर्वाद” लिख कर घूम रहा था।

यद्यपि मेरे मास्क पर लगे अक्षरों ने मुझे मसीह के निमित्त मेरी गवाही की याद दिला दी, परन्तु मेरे हृदय में पवित्रशास्त्र के वचन दूसरों के साथ धीरज धरने के लिए एक सच्चा अनुस्मारक होने चाहिए। जैसे पौलुस ने कुरिन्थियों को लिखा कि “तुम मसीह की पत्री हो, …जो स्याही से नहीं, परन्तु जीवित परमेश्‍वर के आत्मा से पत्थर की पटियों पर नहीं, परन्तु हृदय की माँसरूपी पटियों पर लिखी है” (2 कुरिन्थियों 3:3), वैसे ही“जीवन देने वाला”पवित्र आत्मा (पद 6), “प्रेम, आनन्द, शांति” और हाँ, “धीरज” के साथ जीवन व्यतीत करने में हमारी सहायता कर सकता है (गलातियों 5:22)। हम अपने भीतर उसकी उपस्थिति से वास्तव में आशीषित हैं!